अरामको के शेयर बाज़ार में उतरने की योजना विवादास्पद क्यों है?

 05 Nov 2019 ( न्यूज़ ब्यूरो )
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दुनिया में सबसे ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनी अरामको ने शेयर बाज़ार में आने के लिए आईपीओ लाने की पुष्टि की है। यह दुनिया की सबसे बड़ी इनीशियल पब्लिक ऑफ़रिंग हो सकती है।

सऊदी अरब की तेल कंपनी ने रविवार को कहा कि यह रियाध स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने की योजना बना चुकी है।

सऊदी अरब के शाही परिवार के स्वामित्व वाली यह कंपनी निवेशकों के रजिस्ट्रेशन और दिलचस्पी के मुताबिक आईपीओ लॉन्च प्राइस तय करेगी।

कारोबार जगत के सूत्रों का मानना है कि कंपनी के मौजूदा शेयरों में से एक या दो फ़ीसदी शेयर उपलब्ध करवाए जा सकते हैं।

अरामको की कीमत 1.3 ट्रिलियन डॉलर (927 बिलियन डॉलर) बताई जाती है।

कंपनी ने कहा कि अभी फ़िलहाल इसकी विदेशी शेयर बाज़ार में उतरने की कोई योजना नहीं है।

अरामको बोर्ड के अध्यक्ष यासिर अल-रुम्यान ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, "अंतरराष्ट्रीय शेयर बाज़ार में उतरने के बारे में हम आपको आने वाले वक़्त में बताएंगे।''

सऊदी अरामको का इतिहास साल 1933 से शुरू होता है जब सऊदी अरब और स्टैंडर्ड ऑयल कंपनी ऑफ़ कैलिफ़ॉर्निया (शेवरॉन) के बीच एक डील अटक गई।

ये डील तेल के कुओं की खोज और खुदाई के लिए नई कंपनी बनाने से सम्बन्धित थी। बाद में 1973-1980 के बीच सऊदी अरब ने ये पूरी कंपनी ही खरीद ली।

एनर्जी इन्फ़ॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार सऊदी अरब में वेनेज़ुएला के बाद तेल का सबसे बड़ा भंडार है। तेल उत्पादन में भी अमरीका के बाद सऊदी अरब दूसरे नंबर पर है।

तेल के मामले में सऊदी अरब को बाकी देशों के मुकाबले प्राथमिकता इसलिए भी मिलती है क्योंकि पूरे देश में तेल पर इसका एकाधिकार है और यहां तेल निकालना अपेक्षाकृत सस्ता भी है।

शीन्ड्रर इलेक्ट्रिक (एनर्जी मैनेजमेंट कंपनी) में मार्केट स्टडीज़ के डायरेक्टर डेविड हंटर के मुताबिक़ अरामको निश्चित तौर पर दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है।

शीन्ड्रर ने कहा, "यह बाकी सभी ऑयल और गैस कंपनियों से बड़ी है।''

अगर दुनिया की कुछ बड़ी कंपनियों से तुलना करें तो 2018 में ऐपल की कमाई 59.5 अरब डॉलर थी। इसके साथ ही अन्य तेल कंपनियां रॉयल डच शेल और एक्सोन मोबिल भी इस रेस में बहुत पीछे हैं।

रोज़ 10 मिलियन बैरल के उत्पादन और 356,000 मिलियन अमरीकी डॉलर की कमाई के साथ यह दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी है।

रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के चेयरपर्सन मुकेश अंबानी अरामको को अपनी तेल कंपनी का 20 फ़ीसदी शेयर बेचने का ऐलान कर चुके हैं। यह भारत में अरामको का अब तक का सबसे बड़ा विदेशी निवेश होगा।

आईजी ग्रुप में चीफ़ मार्केट एनलिस्ट क्रिस बाउन का कहना है कि अरामको में निवेश करने के अपने ख़तरे हैं। कंपनी के लिए रणनीतिक और राजनीतिक ख़तरे भी हैं।

ये ख़तरे इस साल सितंबर में तब भी सामने आए थे जब अरामको के स्वामित्व वाले संयत्रों पर हमला हुआ था। सऊदी अरब में कंपनी के दो संयत्रों पर ड्रोन से हमला किया गया जिसकी वजह से आग लग गई और काफ़ी नुक़सान हुआ।

हालांकि कंपनी के चीफ़ एग़्जिक्युटिव अमीन नासिर ने कंपनी की योजनाओं को 'ऐतिहासिक' बताया। उन्होंने कहा कि अरामको अब भी दुनिया की सबसे विश्वसनीय तेल कंपनी है।

आईपीओ लॉन्च के मौके पर अरामको की तरफ़ से कहा गया कि हाल में हुए हमलों का इसके कारोबार, आर्थिक स्थिति और ऑपरेशन पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

मध्यपूर्व मामलों के जानकार क़मर आग़ा ने बीबीसी से बातचीत में कहा, ''आर्थिक सुस्ती और बाज़ार में पैसों की कमी की वजह से अमरीकी और यूरोपीय निवेशक अभी ख़तरा मोल लेने को उत्सुक नहीं हैं। यमन में जारी युद्ध में सऊदी अरब की भूमिका को लेकर भी निवेशक सशंकित हैं।''

सऊदी अरब की अगुवाई वाले गठबंधन ने बीते क़रीब चार साल से यमन के हूती विद्रोहियों के ख़िलाफ़ संघर्ष छेड़ा हुआ है। सितंबर में सऊदी के तेल संयंत्रों पर हुए हमले की ज़िम्मेदारी भी हूती विद्रोहियों ने ली थी। लेकिन अमेरिका और सऊदी अरब ने इस हमले के लिए ईरान को जिम्मेदार माना।

क़मर आग़ा के अनुसार एक अहम सवाल ये भी है कि सऊदी अरब के पास कितना तेल भंडार बचा है क्योंकि ये दिन पर दिन कम ही हो रहा है।  दूसरे, सऊदी के घरेलू बाज़ार में भी तेल की अच्छी-ख़ासी खपत होती है।

एक वक़्त था जब अरामको को रहस्यमय कंपनी माना जाता था लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसने ख़ुद को पूरी तरह बदल डाला है। आज कंपनी जहां पहुंची है, उसके लिए इसने ख़ुद को सावधानी से तैयार किया है।

इसकी तैयारी के लिए कंपनी को कई साल लगाने पड़े हैं। फोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक, ''2016 में अरामको के पास अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक अकाउंटिंग की किताबें तक नहीं थीं। और ना तो उसके पास संस्थागत चार्ट और स्ट्रक्चर के औपचारिक रिकॉर्ड थे।''

सितंबर में हुए ड्रोन हमलों के बाद से अरामको ने अपने आर्थिक आंकड़े प्रकाशित करने शुरू कर दिए हैं। कंपनी अब पत्रकारों के लिए नियमित रूप से सवाल-जवाब के कार्यक्रम भी आयोजित करती है। इतना ही नहीं, अरामको पत्रकारों को ड्रोन हमले वाली जगह पर भी ले गई थी।

कंपनी ने कुछ शीर्ष पदों के लिए महिलाओं को नियुक्त किया है। रविवार को कंपनी ने जो ऐलान किए उसने अंतरराष्ट्रीय चिंताओं का भी ज़िक्र किया गया है।

कंपनी ने कहा है कि उसका मक़सद कच्चे तेल को लंबे वक़्त तक रीसाइकिल करना है। अरामको ने पर्यावरण के प्रति जवाबदेही का परिचय देते हुए कहा है कि वो आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से पर्यावरण को होने वाले नुक़सान को कम करेगी।

कंपनी ने कहा है कि स्थानीय लोग, 'यहां तक कि तलाक़शुदा औरतें' भी इसके शेयर खरीद सकेंगी और हर 10 शेयर के लिए उन्हें एक बोनस दिया जाएगा।

सऊदी अरब अरामको के शेयर इसलिए बेचना चाहता है क्योंकि ये अर्थव्यवस्था की निर्भरता तेल पर कम करना चाहता है।

क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान अपने 'विज़न 2030' के ज़रिए देश की अर्थव्यवस्था को अलग-अलग क्षेत्रों में ले जाना चाहते हैं।

डेविड हंटर के मुताबिक़ सऊदी अरब अपने यहां के विस्तृत रेगिस्तान का इस्तेमाल करके सौर ऊर्जा के उत्पादन में भी आगे निकलना चाहता है।

हंटर कहते हैं, "मौजूदा वक़्त में अरामको के लिए हालात राजनीतिक रूप से जटिल हैं। इसकी बड़ी वजह पिछले साल सऊदी अरब के पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या है। मानवाधिकारों के मामले में सऊदी अरब का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है इसलिए इससे जुड़ी किसी भी चीज़ को संदेह की नज़रों से देखा जाता है।''

मोहम्मद बिन सलमान की योजना में दूसरी कठिनाई हो सकती है इस समय दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन के ख़िलाफ़ चल रही मुहिम।

डेविड हंटर कहते हैं, "अरामको के लिए आगे इसलिए भी मुश्किल हो सकती है क्योंकि इस समय निवेशकों का रुझान जीवाश्म ईंधन की ओर से कम हो रहा है और वो नए विकल्प तलाश रहे हैं।''

क़मर आग़ा मानते हैं कि बेशक़ अरामको के कई सकारात्मक पहलू हैं लेकिन ये कितने निवेशकों को आकर्षित करने में कामयाब हो पाएगी, ये देखने के लिए अभी इंतज़ार करना होगा।

आग़ा कहते हैं कि अगर कंपनी निवेशकों को खींचने में असफल रही तो इसका सबसे ज़्यादा असर उस पर और सऊदी अरब पर ही पड़ेगा।

 

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