क्या डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बन पाएंगे?

 15 Jun 2020 ( आई बी टी एन न्यूज़ ब्यूरो )
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पिछले कुछ सप्ताह अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए मुश्किल भरे साबित हुए हैं। बुरी खबरों के बीच उन्हें अपने चुनाव प्रचार में उतरना पड़ रहा है, इससे उनका चुनावी अभियान भी प्रभावित हो रहा है। बतौर राष्ट्रपति वे लगातार संकटों से घिरते जा रहे है। ऐसे समय में उनके दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने की उम्मीदें गंभीर संकट में दिख रही हैं।

सर्वेक्षणों से यह ज़ाहिर हो रहा है कि ट्रंप बाइडन से पिछड़ गए हैं। कुछ सर्वे में तो वे दहाई अंकों से पिछड़ रहे हैं। हाल ही में इकानामिस्ट मैग्जीन में छपे विश्लेषण में बाइडन को छह में से पांच प्वाइंट मिले हैं, इसके मुताबिक बाइडन 2008 में बराक ओबामा की सहज जीत जैसी स्थिति को दोहरा सकते हैं।

ट्रंप 2016 की रणनीति को ही अपना रहे है लेकिन उनकी मुश्किलें बता रही हैं कि इस बार देश का राष्ट्रीय मूड अलग हो सकता है।

अमरीका के आम लोग कोरोना वायरस की चपेट में है, जिसके चलते एक लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इस महामारी के चलते अमरीकी अर्थव्यवस्था में गिरावट देखने को मिल रहा है। इसके साथ ही अब नस्लभेद और पुलिस व्यवस्था को लेकर देश भर में विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है।

इसके अलावा अब दूसरे टकराव के लिए गुंजाइश नहीं हैं। जिस युद्धधर्मिता और अक्खड़पन ने अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प को अतीत में फ़ायदा पहुंचाया है, लेकिन मौजूदा वक्त में यह तरीका उस जनता से मेल नहीं खा रहा है जिसे सहानुभूति, चिकित्सा और सामंजस्य की दरकार है।

अमरीकी राष्ट्रपति उस वक्त क़ानून और व्यवस्था की दुहाई दे रहे है जबकि लोगों की धारणा नाटकीय तौर पर ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन के साथ दिखाई दे रही है। आम लोगों के रूझान से यह साफ़ दिख रहा है कि वे जब नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डालेंगे तब उनकी प्राथमिकताओं में नस्लीय भेदभाव वास्तविक समस्या के तौर पर शामिल होगा।

कानून और व्यवस्था का अभियान 1960 के अंतिम और 1970 के शुरुआती सालों में नागरिकों के विद्रोह पर क़ाबू पाने में मदद कर रिचर्ड निक्सन को राष्ट्रपति चुनाव में जीत दिला सकता है लेकिन अमरीका अब वह देश नहीं रहा जो 50 साल पहले हुआ करता था।

पिछले कुछ सप्ताह में सामने आए मामलों से अमरीका की मौजूदा राजनीतिक स्थिति का पता चल जाता है। गुरुवार को ट्रंप ने दक्षिण के 10 सैन्य ठिकानों के नाम से कंफेडरेट जनरल के नाम हटाने से इनकार करते हुए कहा कि ऐसा करना यहां प्रशिक्षित सैनिकों का अपमान होगा।

लेकिन उसी वक्त दक्षिण में शुरू हुए और बेहद लोकप्रिय नेस्कर कार रेसिंग सर्किट ने अपने सभी आयोजनों से कंफेडरेट झंडे को फहराने पर पाबंदी लगा दी। स्थानीय और प्रांतीय नेता ने अपने इलाकों में कंफेडरेट जनरलों की प्रतिमा को हटाना शुरू कर दिया है। और तो और इन जनरलों के नाम सैन्य ठिकाने के नाम से हटाने की मांग अमरीकी सेना के अंदर से आने लगी है। सेना के रिटायर्ड जनरल डेविड पेट्रेएस ने अटलांटिक मैग्जीन में अपने आलेख में इसकी मांग की है।

अमरीका में इन दिनों एक सांस्कृतिक संघर्ष देखने को मिला है, जिसका पहले ट्रंप आनंद उठा चुके हैं। पुलिस के अन्यायपूर्ण तौर तरीकों के ख़िलाफ़ पेशेवर एथलीटों ने राष्ट्रीय गान के वक्त घुटने टेक कर विरोध जताया है। नेशनल फुटबाल लीग ने आधिकारिक तौर पर खेद जताते हुए विरोध प्रदर्शन में शामिल खिलाड़ियों का साथ नहीं देने की घोषणा की है।  इन खिलाड़ियों में पूर्व क्वार्टरबैक कोलीन केपरनिक भी शामिल हैं।

अमरीकी सॉकर फे़डरेशन ने बुधवार को इस बात की आवश्यकता को दोहराने के लिए मतदान किया है कि राष्ट्रीय गान के सभी खिलाड़ी सम्मानपूर्वक खड़े रहें। विवादों से दूर रहने वाले डेमोक्रेट्स अब एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए अपने घुटने टेक रहे हैं। इस बीच, ट्रंप ने इस अभ्यास की निंदा करते हुए नेशनल फुटबॉल लीग और लीग के क्वार्टर बैक ड्रीउ ब्रीस पर निशाना साधा। ब्रीस ने घुटने टेकने को राष्ट्रविरोधी मानने वाले अपने बयान के लिए हाल ही में माफ़ी मांगी है।

दो सप्ताह पहले, डोनाल्ड ट्रंप के एक चर्च में जाने से पहले क़ानून प्रवर्तन एजेंसी और नेशनल गार्ड के सैनिकों ने बलपूर्वक नजदीक के पार्क खाली करा लिया था। यहां ट्रंप ने बाइबिल हाथ में लेकर फोटोग्राफरों से तस्वीरें खिंचवाई थी। इसके बाद से वे लगातार अपने इस क़दम का बचाव कर रहे हैं, इस दौरान वे ये बताते हैं कि सुरक्षा बलों के लिए पार्क खाली कराना कितना आसान था। उन्होंने ट्वीट किया था, ''पार्क में सैर''।

वहीं अमरीकी नेताओं और अमरीकी सेना के सादे कपड़े वाले सदस्यों ने इस घटना से खुद को अलग करना शुरू कर दिया है। पूर्व रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस सहित कई सेवानिवृत्त जनरलों ने इस कार्रवाई को लापरवाही भरा बताया था। लेकिन मौजूदा रक्षा मंत्री मार्क एस्पर और ज्वाइंट चीफ ऑफ़ स्टॉफ मार्क मिले ने ट्रंप के साथ चर्च जाने को लेकर खे़द जताया है।

पिछले सप्ताह वाशिंगटन डीसी में सुरक्षा मुहैया कराने के लिए भेजे गए नेशनल गार्ड के सदस्यों के बीच व्यापक बेचैनी पर न्यूयार्क टाइम्स ने रिपोर्ट प्रकाशित की है।

इसमें सबसे विवादास्पद प्रकरण ट्रंप का वो ट्वीट था जिसमें एक 75 साल का वीडियो प्रदर्शनकारी ज़मीन पर गिरा दिख रहा है और न्यूयार्क पुलिस ने उस शख़्स को लहूलुहान कर रखा है। ट्रंप ने आरोप लगाया था कि यह कट्टर वामपंथी देशद्रोही शख़्स क़ानून प्रवर्तन करने वाली एजेंसियों की इलेक्ट्रानिक निगरानी कर रहा था। इस आरोप को दक्षिणपंथी मीडिया ने खूब हवा दी लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप के कई रिपब्लिकन समर्थनों ने इस ट्वीट का समर्थन नहीं किया।

इन सबने लोगों के मन में राष्ट्रपति ट्रम्प के फ़ैसलों पर सवाल उत्पन्न किया है। खासकर संकट के समय में वे जिस तरह के फ़ैसले ले रहे हैं, उसने उनके फिर से राष्ट्रपति चुने जाने की राह में मुश्किलें पैदा कर दी हैं।

पॉलिटिको मैग्जीन के कंजरवेटिव नेशनल रिव्यू के एडिटर रिक लॉरी ने लिखा है, ''अगर वे नवंबर में हार जाते हैं तो ऐसा इसलिए नहीं होगा कि वे बड़े विधायी सुधार करना चाहते थे जो राजनीतिक रूप में बहुत दूर की बात थी।''

''ऐसा इसलिए भी नहीं होगा कि वे उन्होंने कोई क्रिएटिव और अपरंपरागत नीति को अपना लिया था। ऐसा इसलिए भी नहीं होगा कि वे चुनौतीपूर्ण घटनाओं से घिरे हुए थे। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि उन्होंने अपने राष्ट्रपति पद को अनावश्यक तौर पर मैदान में उतार दिया है, एक वक्त में 280 शब्द के मैदान में।''

हालांकि अभी भी अमरीकी राष्ट्रपति के चुनाव में साढ़े चार महीने से ज़्यादा का वक्त बचा है। अभी भी संभव है कि ट्रंप अपनी स्थिति मजबूत कर लें।

हालांकि अब तक ट्रंप के ऊपर डेमोक्रेट्स की बढ़त टिकाऊ दिख रही है। यह 2016 के हिलेरी क्लिंटन से ज़्यादा टिकाऊ दिख रही है। पिछले कुछ सप्ताह से डोनाल्ड ट्रंप मुश्किलों में ज़रूर दिख रहे हैं और इस बार उनकी ख़ासियतें उन्हें फेवरिट उम्मीदवार बनाने के लिए पर्याप्त नहीं लग रही हैं।

यही पर सवाल उठता है कि क्या डोनाल्ड ट्रम्प दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति बन पाएंगे? फ़िलहाल ऐसी संभावना नहीं दिख रही है।

 

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