जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किए जाने के बाद लगाए गए प्रतिबंधों में जैसे-जैसे सरकार की तरफ़ से ढील दी जा रही है, बाज़ार में चहल-पहल बढ़ने लगी है और ज़िंदगियां पटरी पर आती नज़र आ रही हैं। जम्मू के थोक बाज़ार में व्यापार सामान्य रूप से चल रहा है।
राज्य के जिन हिस्सों में प्रतिबंध लगाए गए हैं, उनकी तुलना में जम्मू की स्थिति कहीं बेहतर है। ख़ासकर कश्मीर के मुकाबले।
इलाक़े में सुरक्षा के कड़े इंतजाम हैं। जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले प्रावधानों को ख़त्म किए जाने के क़रीब दो महीने होने वाले हैं, लेकिन अभी भी हाई स्पीड इंटरनेट यहां के लोगों के लिए एक सपना है।
यहां के लोगों को लैंडलाइन और मोबाइल के ज़रिये इंटरनेट की सुविधा तो मिल रही है, लेकिन उसकी स्पीड बहुत ही कम है। नतीजतन लोग समय पर जीएसटी और इनकम टैक्स रिटर्न दाख़िल नहीं कर पाए हैं।
जम्मू के लोग अपने भविष्य को लेकर असमंजस में हैं। स्थानीय लोगों के मन में कई सवाल हैं, जिनका उत्तर अभी तक उन्हें नहीं मिल पाया है। उदाहरण के लिए, क्या जम्मू और कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश ही रहेगा या फिर इसे अंततः राज्य का दर्जा दिया जाएगा?
यह सवाल सभी के लिए बहुत मायने रखता है, चाहे वो राज्य के सरकारी कर्मचारी हों या फिर व्यापारी और आम आदमी।
अनुच्छेद 370 के तहत बाहरी लोग राज्य में जमीन नहीं खरीद सकते थे, लेकिन अब सभी खरीद-फरोख़्त कर सकते हैं।
यही बात जम्मू के स्थानीय लोगों के लिए चिंता का कारण बनी हुई है और वे राज्य के राजनीतिक भविष्य की तरफ़ उम्मीद लगा कर देख रहे हैं।
जम्मू की थोक मंडी में सेब का बाज़ार सही चल रहा है। यह यहां की बड़ी मंडियों में से एक है।
मार्केट एसोसिएशन के अध्यक्ष श्यामलाल का कहना है कि सेब के दाम पिछले साल की तुलना में काफ़ी कम हैं।
मैदानी इलाक़ों में सेब नहीं उगाए जाते हैं। वे कश्मीर की घाटी से आते हैं। श्यामलाल का कहना है कि उन्होंने इस सीज़न के लिए बाग मालिकों को अग्रिम भुगतान किया था, लेकिन किसी ने उन्हें सेब नहीं भेजे।
वो कहते हैं, "कश्मीर घाटी के बागान मालिकों ने इस सीज़न के लिए हमसे अग्रिम भुगतान लिया था, लेकिन हमारे पास फ़लों का एक ट्रक भी नहीं आया। हमारा पैसा फंसा हुआ है। पहली समस्या यह है कि हम उनसे संपर्क नहीं कर पा रहे हैं। अगर हमारी बात भी होती है तो वे कहते हैं कि वहां की स्थिति अच्छी नहीं है और उनके आने-जाने पर रोक लगी हुई है।''
ऐसी स्थिति में प्रति किलोग्राम सेब 50 से 70 रुपये तक बेचे जा रहे हैं। लेकिन यहां के बाज़ारों को घाटी की सबसे अच्छी गुणवत्ता वाले सेब का इंतज़ार है।
श्यामलाल को यह उम्मीद है कि घाटी में स्थितियां बेहतर होंगी और उन्हें उनके फंसे पैसे और माल वापस मिल पाएंगे।
राज्य से बाहर के लोग निवेश करने के लिए लंबे वक़्त से जम्मू पर अपनी नज़र गड़ाए हुए हैं और काफ़ी समय से विभिन्न परियोजनाओं में निवेश कर रहे हैं। अनुच्छेद 370 के ख़त्म किए जाने के बाद से कुछ स्थानीय व्यवसायी परेशान है।
जम्मू और कश्मीर के पूर्व विधान पार्षद और भाजपा के वरिष्ठ नेता विक्रम रंधावा को लगता है कि कई व्यापारी बाज़ार के बड़े खिलाड़ियों के आगे नहीं टिक पाएंगे।
वो कहते हैं, "जम्मू में बहुत बड़े कारोबारी घराने नहीं हैं, लेकिन यह सच है कि उनके मन में यह डर है कि वे बड़े खिलाड़ियों का सामना नहीं कर पाएंगे। भारी उद्योगों के मालिक पहले से बाहर के लोग हैं। जम्मू में बड़ा निवेश भी बाहरी लोग ही करेंगे। स्थानीय लोगों को नहीं पता है कि वे उस स्थिति का सामना कैसे करेंगे। हम उनसे मुकाबला भी नहीं कर सकते हैं। हमारे पास उतना पैसा या संसाधन नहीं है।''
विक्रम एक क्रशिंग यूनिट के मालिक भी है। जब फ़ोर लेन की सड़क परियोजना आई तो वो ख़ुश हुए। उन्हें लगा कि उनके लिए व्यापार के अवसर बढ़ेंगे लेकिन अब उनका विचार बदल गया है।
उन्होंने कहा, "दुर्भाग्य से जिन लोगों को फ़ोर लेन की सड़क परियोजना का कॉन्ट्रैक्ट मिला था, वो अपनी क्रशिंग यूनिट ख़ुद लेकर आए हैं। सिर्फ क्रशिंग यूनिट ही नहीं, बाहर से अपने श्रमिक भी लेकर आए हैं। हम निराश हुए कि विकास की योजनाओं में हमारा कोई योगदान नहीं है।''
जम्मू के स्थानीय डोगरा भारत सरकार के फ़ैसले से फ़िलहाल तो खुश हैं लेकिन वे चाह रहे हैं कि अनुच्छेद 371 जैसी व्यवस्था जम्मू-कश्मीर में भी होनी चाहिए, जिससे युवाओं का भविष्य सुरक्षित हो सके।
युवा डोगरा नेता तरुण उप्पल कहते हैं कि सरकार को कुछ ऐसे प्रबंध करने चाहिए जिससे स्थानीय लोगों का भविष्य सुरक्षित हो सके।
उन्हें लगता है कि अनुच्छेद 370 को ख़त्म किए जाने के बाद सरकार को संविधान का अनुच्छेद 371 राज्य में लागू करना चाहिए ताकि स्थानीय लोगों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
संविधान का अनुच्छेद 371 पूर्वोत्तर के कई राज्यों में लागू है, जिसके तहत राज्यों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।
राज्यों के लिए विशेष प्रावधान इसलिए किए गए थे क्योंकि वे अन्य राज्यों के मुक़ाबले काफ़ी पिछड़े थे और उनका विकास समय के साथ सही तरीक़े से नहीं हो पाया था। साथ ही यह अनुच्छेद उनकी जनजातीय संस्कृति को संरक्षण प्रदान करता है। साथ ही स्थानीय लोगों को नौकरियों के अवसर मुहैया कराता है।
अनुच्छेद 371 में ज़मीन और प्राकृति संसाधनों पर स्थानीय लोगों के विशेषाधिकार की बात कही गई है।
मिज़ोरम, नागालैंड, मेघालय, सिक्किम और मणिपुर में अनुच्छेद 371 लागू है और बाहरी लोगों को यहां ज़मीन ख़रीदने की अनुमति नहीं है।
जम्मू के कई लोगों का मानना है कि अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद बाहरी लोगों को वहां के खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के अवसर मिलेंगे।
सुनील पंडिता एक कश्मीरी पंडित हैं। तीन दशक पहले वो कश्मीर से आकर जम्मू में बसे थे। पंडिता कहते हैं कि जम्मू में पहले से ही कई बाहरी लोग हैं।
वो कहते हैं, "कश्मीरी पंडितों से लेकर प्रवासी मज़दूरों तक। शहर पर पहले से ही भार बढ़ रहा है। बाहरी लोगों के लिए हम तैयार नहीं हैं। सरकार के इस क़दम से स्थानीय युवाओं में बेरोज़गारी और अपराध बढ़ेगा।''
राज्य में नई कानून व्यवस्था लागू हो चुकी है। यह बदलाव का वक़्त है और स्थानीय लोग अपने भविष्य को लेकर असमंजस में हैं कि क्या राज्य एक केंद्र शासित प्रदेश ही रहेगा या फिर उसे राज्य का दर्जा मिल पाएगा?
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