क्या महिलाओं को निकाहनामा के समय तीन तलाक को ना कहने का विकल्प दिया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

 17 May 2017 ( परवेज़ अनवर, एमडी & सीईओ, आईबीटीएन ग्रुप )
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तीन तलाक़ पर आज सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) से पूछा कि क्या महिलाओं को निकाहनामा के समय तीन तलाक को ना कहने का विकल्प दिया जा सकता है। प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह भी कहा कि क्या सभी काजियों से निकाह के समय इस शर्त को शामिल करने के लिए कहा जा सकता है।

संविधान पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर भी शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस खेहर ने सुनवाई के दौरान एआईएमपीएलबी के वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि क्या निकाह के समय निकाहनामा में किसी महिला को तीन तलाक के लिए ना कहने का विकल्प दिया जा सकता है।

कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि ट्रिपल तलाक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने से एक मरणासन्न परंपरा पुनर्जीवित हो सकती है।

सिब्बल ने कहा कि ट्रिपल तलाक की परंपरा अब मुस्लिम समुदाय के एक छोटे से हिस्से में चल रही है और खत्म होने के कगार पर है।

कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अगर धर्मनिरपेक्ष सुप्रीम कोर्ट ट्रिपल तलाक की समीक्षा करना चाहता है और केंद्र की इसे बैन लगाने पर सुनवाई करता है तो मुस्लिम समुदाय इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपना सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने एआईएमपीएलबी से कहा कि क्या निकाहनामा में महिलाओं की ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर उनके कबूलनामा को शामिल करने पर सभी काजियों को एक दिशा-निर्देश जारी किया जा सकता है?

कोर्ट के सवाल कि क्या एआईएमपीएलबी की सलाह सभी काजी ग्राउंड लेवल तक मानेंगे। इस पर एआईएमपीएलबी के वकीलों में से एक यूसुफ मुचला ने कोर्ट को बताया कि बोर्ड की सलाह सभी काजियों के पालन करने के लिए अनिवार्य नहीं है। वकील ने यह भी कहा कि बोर्ड आए सुझावों को विनम्रता से स्वीकार करते हैं और इस पर गौर भी करेंगे।

एआईएमपीएलबी ने 14 अप्रैल 2017 को पारित एक दस्तावेज भी कोर्ट को दिखाया, जिसमें कहा गया है कि तीन तलाक एक पाप है और समुदाय को यह करने का बहिष्कार करना चाहिए।

तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पीठ के समक्ष चल रही सुनवाई का आज पांचवां दिन है। पीठ में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी सहित विभिन्न धार्मिक समुदायों के सदस्य जज शामिल हैं।

मंगलवार को एआईएमपीएलबी ने कहा था कि तीन तलाक ऐसा ही मामला है जैसे यह माना जाता है कि भगवान राम अयोध्या में पैदा हुए थे। इसने कहा था कि ये धर्म से जुड़े मामले हैं और इन्हें संवैधानिक नैतिकता के आधार पर नहीं परखा जा सकता।

बता दें कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि तीन तलाक एक 'गुनाह और आपत्तिजनक' प्रथा है, फिर भी इसे जायज ठहराया गया है और इसके दुरुपयोग के खिलाफ समुदाय को जागरूक करने का प्रयास जारी है।

वरिष्ठ वकील यूसुफ मुचला ने न्यायालय से तीन तलाक के मामले में हस्तक्षेप न करने के लिए कहा, क्योंकि यह आस्था का मसला है और इसका पालन मुस्लिम समुदाय 1,400 साल पहले से करते आ रहा है, जब इस्लाम अस्तित्व में आया था।

उन्होंने कहा कि तीन तलाक एक 'गुनाह और आपत्तिजनक' प्रथा है, फिर भी इसे जायज ठहराया गया है और इसके दुरुपयोग के खिलाफ समुदाय को जागरूक करने का प्रयास जारी है।

एआईएमपीएलबी की कार्यकारिणी समिति के सदस्य यूसुफ मुचला ने यह सुझाव पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ को तब दिया, जब पीठ ने उनसे पूछा कि तीन तलाक को निकाह नामा से अलग क्यों किया गया और तलाक अहसान तथा हसन को अकेले क्यों शामिल किया गया?

एआईएमपीएलबी की तरफ से ही पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि कुछ लोगों का मानना है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और यह आस्था का मामला है और इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। उसी तरह, मुस्लिम पर्सनल लॉ भी आस्था का विषय है और न्यायालय को इस पर सवाल उठाने से बचना चाहिए।

सिब्बल पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ के समक्ष अपनी दलील पेश कर रहे थे, जिसमें प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित तथा न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर शामिल हैं जो तीन तलाक की संवैधानिक मान्यता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं की सुनवाई कर रही है।

जब सिब्बल ने जोर दिया कि पर्सनल लॉ आस्था का मामला है और न्यायालय को इसमें दखल नहीं देना चाहिए, तो न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा, ''हो सकता है। लेकिन फिलहाल 1,400 वर्षो बाद कुछ महिलाएं हमारे पास इंसाफ मांगने के लिए आई हैं।''

सिब्बल ने कहा, ''पर्सनल लॉ कुरान व हदीस से लिया गया है और तीन तलाक 1,400 साल पुरानी प्रथा है। हम यह कहने वाले कौन होते हैं कि यह गैर-इस्लामिक है। यह विवेक या नैतिकता का सवाल नहीं, बल्कि आस्था का सवाल है। यह संवैधानिक नैतिकता का सवाल नहीं है।"

सिब्बल ने महान्यायवादी मुकुल रोहतगी द्वारा न्यायालय के समक्ष सोमवार को की गई उस टिप्पणी पर चुटकी ली जिसमें उन्होंने कहा था कि न्यायालय मुस्लिमों में तलाक के तीनों रूपों को अमान्य करार दे और केंद्र सरकार तलाक के लिए नया कानून लाएगी।

जब सिब्बल ने कहा कि सरकार सर्वोच्च न्यायालय से नहीं कह सकती कि आप पहले तलाक़ के तीनों रूपों को अमान्य करार दीजिए, उसके बाद हम एक नया कानून लाएंगे, तब प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति केहर ने कहा, ''पहली बार आप हमारे साथ हैं।''

सिब्बल ने कहा, ''आस्था को कानून की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता।''

उन्होंने कहा, हम बेहद जटिल दुनिया में प्रवेश कर चुके हैं, जहां क्या गलत है और क्या सही, इसकी खोज करने के लिए हमें 1,400 साल पहले इतिहास में जाना होगा।

 

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