वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद में स्थित व्यास तहखाने में आज से पूजा शुरू हुई
गुरुवार, 1 फरवरी 2024
भारत के राज्य उत्तरप्रदेश के वाराणसी की ज़िला अदालत के बुधवार, 31 जनवरी 2024 को दिए फ़ैसले को लागू करते हुए ज़िला प्रशासन ने गुरुवार, 1 फरवरी 2024 की सुबह ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित व्यास तहखाने में पूजा अर्चना शुरू करवा दी।
वाराणसी के ज़िलाधिकारी एस राजलिंगम ने गुरुवार, 1 फरवरी 2024 के तड़के पत्रकारों को इसकी जानकारी दी।
एस राजलिंगम ने कहा, "मुझे न्यायालय का जो ऑर्डर है, उसका कंप्लायन्स (पालन) किया गया।''
वहीं ज्ञानवापी परिसर स्थित व्यास तहखाने के सामने की बैरिकेडिंग के बारे में पूछे गए सवाल के उत्तर में एस राजलिंगम ने फिर यही कहा कि 'कोर्ट के ऑर्डर का कंप्लायन्स' किया गया।
पत्रकारों ने जब एस राजलिंगम से पूछा कि क्या पूजा कराई गई तो एस राजलिंगम ने फिर वही जवाब दिया, "कोर्ट ने जो बोला है उसका कंप्लायन्स किया गया।''
इसे एक संयोग कहे या पूर्व नियोजित योजना कहे कि आज (गुरुवार, 1 फरवरी 2024) से 38 साल पहले 1986 में अयोध्या के बाबरी मस्जिद का ताला 1 फरवरी को ही खोला गया था।
वहीं इस मामले के एक वादी और वकील सोहन लाल आर्य ने गुरुवार, 1 फरवरी 2024 को एएनआई से हुई बातचीत में पुष्टि की है कि व्यास तहखाने में जाने का रास्ता बन गया है, लेकिन दर्शन करने वालों को अभी वहां जाने की इजाज़त नहीं है।
सोहन लाल आर्य ने कहा, "आज (गुरुवार, 1 फरवरी 2024) का दिन बहुत गौरवान्वित क्षण लग रहा है। हमारा रोम रोम पुलकित है। ज़िला जज का कल (बुधवार, 31 जनवरी 2024) का फ़ैसला अभूतपूर्व लगा। अभी वहां की सारी व्यवस्थाएं पूरी हैं लेकिन अभी वहां (व्यास का तहखाना) जनता को दर्शन करने नहीं दिया जा रहा है। इस क्षण का हम 40 सालों से इंतज़ार कर रहे थे।''
सोहन लाल आर्य के अनुसार, "अभी नंदी के बगल से (उत्तर की ओर) बाबा के तहखाने की ओर जाने के लिए अलग से दरवाज़ा बन गया है। वहां पर तीन पुलिसकर्मी थे। उनसे हमने कहा कि दर्शन करने दिया जाए। इस पर उन्होंने कहा कि अभी दर्शन पूजन का अधिकार नहीं है, जैसे ही मिलेगा सभी दर्शनार्थियों को वहां जाने दिया जाएगा।''
इससे पहले, बहुत जल्दी दिखाते हुए वाराणसी के डीएम एस राजलिंगम के साथ पुलिस और प्रशासन के अन्य आला अधिकारी बुधवार, 31 जनवरी 2024 को लगभग रात 11 बजे काशी कॉरिडोर के गेट नंबर चार से अंदर गए। वहां से ज्ञानवापी परिसर के भीतर जाने का रास्ता है।
वहीं ज्ञानवापी परिसर के चारों ओर लगे बैरिकेड में से कुछ हिस्सा काटकर विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित नंदी की प्रतिमा के सामने से रास्ता बनाने के लिए कई मजदूर वहां पहुंचे।
भारी संख्या में पुलिस के जवान भी वहां तैनात किए गए। वाराणसी के पुलिस कमिश्नर अशोक जैन ने बताया कि क़ानून और व्यवस्था के सारे इंतज़ाम किए गए।
तक़रीबन तीन घंटे बाद गुरुवार, 1 फरवरी 2024 को अहले सुबह 2 बजे डीएम एस राजलिंगम ने परिसर से बाहर आकर मीडिया को बताया, ''न्यायालय के आदेश का कंप्लायन्स किया गया।''
वाराणसी की ज़िला अदालत ने बुधवार, 31 जनवरी 2024 को सुनाया था आदेश
बुधवार, 31 जनवरी 2024 को वाराणसी की ज़िला अदालत ने हिंदू पक्ष को ज्ञानवापी मस्जिद के व्यास तहखाने में पूजा का अधिकार दे दिया था।
वाराणसी की ज़िला अदालत ने अपने आदेश में लिखा था, "ज़िला मजिस्ट्रेट, वाराणसी/रिसीवर को निर्देश दिया जाता है कि वह सेटेलमेंट प्लॉट नं-9130 थाना- चौक, ज़िला वाराणसी स्थित भवन के दक्षिण की तरफ स्थित तहखाने, जो कि वादग्रस्त संपत्ति है, वादी तथा काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड, पुजारी से तहखाने में स्थित मूर्तियों का पूजा, राग-भोग शुरू कराए।''
अदालत ने इस आदेश को लागू करने के लिए प्रशासन को 7 दिन का समय दिया था। लेकिन जिला प्रशासन ने बहुत जल्दी दिखाते हुए 12 घंटे पूरा होते होते कोर्ट के इस आदेश का पालन किया।
काश, भारत के राज्यों के जिला प्रशासन (खासकर वाराणसी का जिला प्रशासन) विकास के कार्यों में इतनी तत्परता दिखाते तो भारत का हर जिला विकसित जिला होता और भारत एक विकसित देश होता। भारत भयंकर गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी की समस्याओं से गंभीर रूप से जूझ रहा है। लेकिन इस ओर भारत और उसके राज्यों की विधायिकाओं और कार्यपलिकाओं का ध्यान नहीं। भारत की राजनीति धार्मिक मुद्दों, धार्मिक आस्था और धार्मिक भावनाओं पर केंद्रित हो गई है। जिसका खामियाजा भारत के अधिकांश लोग भयंकर गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी की जैसी समस्याओं के रूप में झेल रहे हैं।
हालांकि ज्ञानवापी मस्जिद पक्ष ने वाराणसी की ज़िला अदालत के फ़ैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देने का ऐलान किया है।
इतना तो तय है कि वाराणसी की ज़िला अदालत के इस फैसले से भारत में हिन्दू और मुस्लिम के बीच सांप्रदायिक तनाव बढ़ेगा। जिस प्रकार कोर्ट के फैसले से बाबरी मस्जिद का ताला खोलने के बाद भारत सांप्रदायिकता की आग में दशकों से जल रहा है। अभीतक भारत में सांप्रदायिकता की यह आग बुझी नहीं है कि वाराणसी की ज़िला अदालत के इस फैसले ने भारत को सांप्रदायिकता की आग में दशकों के लिए झोंक दिया। आने वाले वक़्त में क्या होगा? कोई नहीं जनता, लेकिन इतना तो तय है कि भविष्य के भारत पर इसका बुरा असर होगा। भारत का भविष्य अच्छा हो, इसके लिए जरूरी है कि भारत की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को बिना सोचे-समझे या किसी एजेंडा के तहत कोई ऐसा विवादास्पद काम और फैसला करने से परहेज करना चाहिए जिससे भारत में आंतरिक अशांति फैले या भारत का भविष्य खतरे में पड़ जाये।
हमारे सामने मणिपुर हाई कोर्ट के द्वारा दिए फैसले का उदाहरण है जिसकी वजह से मणिपुर पिछले कई महीनों से मैतेई (हिन्दू, सनातन धर्म के अनुयायी) और कुकी आदिवासी (ईसाई) के बीच बड़े पैमाने हिंसा का शिकार है। इस हिंसा से लाखों लोग विस्थापित हुए और सैकड़ों लोग मारे गए। कई महिलाओं का बलात्कार हुआ और कई महिलाओं को नंगा घुमाया गया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मणिपुर हिंसा की वजह से भारत को व्यापक आलोचना और विरोध का सामना करना पड़ा।
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