संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाचले ने बुधवार को भारत को आगाह किया है कि 'बाँटने वाली नीतियों' से आर्थिक वृद्धि को झटका लग सकता है।
मिशेल ने कहा कि संकीर्ण राजनीति एजेंडा के कारण समाज में कमज़ोर लोग पहले से ही हाशिए पर हैं।
मिशेल ने कहा, ''हमलोगों को ऐसी रिपोर्ट मिल रही है जिससे संकेत मिलते हैं कि अल्पसंख्यकों के साथ उत्पीड़न के वाक़ये बढ़े हैं। ख़ास करके मुस्लिम और ऐतिहासिक रूप से वंचित समूहों में दलितों और आदिवासियों का उत्पीड़न बढ़ा है।''
मिशेल ने ये बात जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार काउंसिल की वार्षिक रिपोर्ट में कही।
इससे पहले पिछले साल संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार परिषद ने कश्मीर में मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन और उसकी जांच की बात कही थी।
उस समय कश्मीर पर यूएन की रिपोर्ट को भारत ने पूरी तरह से ख़ारिज करते हुए कहा था कि भारत की संप्रभुता का उल्लंघन और उसकी क्षेत्रीय एकता के ख़िलाफ़ है।
2016 में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल की सालाना रिपोर्ट में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की आलोचना की गई थी।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ग्रीनपीस और फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन का हवाला देते हुए एनजीओ और कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने और विदेशी फ़ंड रोकने के लिए मोदी सरकार को जमकर कोसा था।
वहीं, ह्यूमन राइट्स वॉच की 2016 की रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हो रहे हमलों को रोकने में नाकाम रही।
अपनी 659 पन्नों की रिपोर्ट में ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा था कि सरकार का या फिर बड़े औद्योगिक प्रोजेक्ट्स का विरोध करने वाले एनजीओ को मिलने वाले विदेशी फ़ंड्स पर रोक लगा दी गई इससे अन्य संगठन भी सकते में हैं।
ह्यूमन राइट्स वॉच की मीनाक्षी गांगुली ने कहा था, ''असहमति पर भारत सरकार का जो रवैया रहा है, उससे देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी की परंपरा को धक्का लगा है।''
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