ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने शनिवार को दिए एक भाषण में कहा है कि संयुक्त अरब अमीरात ने इसराइल के साथ समझौता कर भारी ग़लती की है।
यूएई पर निशाना साधते हुए अपने आक्रामक भाषण में रूहानी ने कहा कि यूएई ने धोखा दिया है।
वहीं ईरान के कट्टरवादी अख़बार कायहान के मुख्य संपादक ने कहा है, ''यूएई ने अपने आप को विरोध का वैध निशाना बना लिया है।''
कायहान के संपादक की नियुक्ति ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातोल्लाह ख़मेनई ही करते हैं।
गुरुवार को अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसराइल और यूएई के बीच समझौते की घोषणा की थी।
माना जा रहा है कि इस समझौते का मक़सद क्षेत्रीय शक्तिशाली देश ईरान के ख़िलाफ़ गठजोड़ को मज़बूत करना है।
टीवी पर दिए अपने भाषण में रूहानी ने यूएई को चेतावनी देते हुए कहा है कि मध्य पूर्व में इसराइल के पैर मज़बूत करने के गंभीर परिणाम होंगे।
उन्होंने कहा, ''वो (यूएई) सावधान रहें। उन्होंने बहुत बड़ी ग़लती कर दी है। एक विश्वासघाती क़दम उठाया है। हमें उम्मीद है कि उन्हें अपनी ग़लती का अहसास होगा और वो ये ग़लत रास्ता छोड़ देंगे।''
वहीं पहले पन्ने पर प्रकाशित टिप्पणी में कायहान अख़बार ने कहा है, ''संयुक्त अरब अमीरात ने फ़लस्तीन के लोगों को बड़ा धोखा दिया है। ये धोखा इस छोटे से अमीर देश को जो अपनी सुरक्षा के लिए दूसरों पर निर्भर है 'रेज़िस्टेंस' का वैध निशाना बना देगा।''
ईरान आमतौर पर अमरीका और इसराइल के ख़िलाफ़ हथियार उठाने वाले चरमपंथी संगठनों को रेजिस्टेंस फ्रंट ही कहता है।
रूहानी ने ये भी कहा कि इस समझौते का मक़सद नवंबर में होने जा रहे अमरीकी चुनावों में राष्ट्रपति ट्रंप की उम्मीदवारी को मज़बूत करना है। उन्होंने कहा कि इसलिए ही इस समझौते की घोषणा वॉशिंगटन से की गई है।
रूहानी ने कहा, ''ये समझौता अब क्यों हुआ है? अगर ये समझौता ग़लत नहीं है तो फिर इसकी घोषणा एक तीसरे देश में क्यों हुई है? वो भी अमरीका में? ताकि वॉशिंगटन में बैठा वो व्यक्ति वोट बटोर सके। आपने अपने देश को, अपने लोगों को, मुसलमानों को और अरब दुनिया को धोखा दिया?''
ईरान के शक्तिशाली सैन्य संगठन रिवॉल्युश्नरी गार्ड्स कोर ने एक बयान में कहा है कि यूएई-इसराइल समझौते के बाद 'बच्चों की हत्या करने वाले यहूदी शासन के विनाश की प्रक्रिया और तेज़ हो जाएगी'।
वहीं एक बायन में संयुक्त अरब अमीरात ने कहा है कि इसराइल के साथ उसके समझौते का मक़सद ईरान को जवाब देना नहीं है।
यूएई ने तुर्की की ओर से समझौते की आलोचना को भी ख़ारिज किया है।
यूएई के विदेश मंत्री अनवर गरगाश ने ब्लूमबर्ग से कहा, ''ये समझौता ईरान के बारे में नहीं है। ये यूएई, इसराइल और अमरीका के बारे में हैं। इसका मक़सद किसी भी तरह से ईरान के ख़िलाफ़ कोई समूह बनाना नहीं है।''
ट्रंप प्रशासन और इसराइल ने यूएई के साथ समझौते को ईरान को किनारे करने की कोशिश के तौर पर दिखाया है लेकिन यूएई ने संकेत दिए हैं कि वो अपने पड़ोसी ईरान को उकसाना नहीं चाहता है।
गरगाश ने कहा, ''ईरान के साथ हमारा रिश्ता बहुत जटिल है। हमारी कुछ चिंताएं ज़रूर हैं लेकिन हमें लगता है कि इन मुद्दों को तनाव कम करके और कूटनीतिक तरीक़ों से ही सुलझाया जा सकता है।''
इसी बीच तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यब अर्दोआन ने शुक्रवार को कहा था कि तुर्की यूएई से अपने राजदूत को वापस बुला सकता है।
अर्दोआन का कहना था कि इसराइल के साथ समझौते से फ़लस्तीनी लोगों के अधिकारों को झटका लगा है।
गरगाश ने तुर्की के इस रुख़ को आडंबर कहकर ख़ारिज कर दिया। तुर्की के इसराइल के साथ व्यापारिक रिश्ते हैं।
गरगाश ने कहा, ''सालाना पाँच लाख इसराइली पर्यटक तुर्की आते हैं। दोनों देशों के बीच दो अरब डॉलर का कारोबार है और तुर्की का इसराइल में अपना दूतावास भी है। और अब मैं पूछता हूं कि क्या उनका ये पक्ष नैतिक है?''
यूएई के साथ समझौते के तहत इसराइल ने वेस्ट बैंक के इलाक़ों पर क़ब्ज़े की अपनी योजना को टाल दिया है।
संयुक्त अरब अमीरात का कहना है, ''हम क़ब्ज़े के मुद्दे के लेकर बहुत चिंतित हैं। हमने इस कल्पनात्मक उद्घोषणा के माध्यम से कम से कम वार्ता के लिए जगह तो बनाई ही है।''
तुर्की भी नाराज़
तुर्की ने कहा कि संयुक्त अरब अमीरात को इतिहास कभी माफ़ नहीं करेगा। तुर्की ने कहा कि यह यूएई का पाखंडपूर्ण व्यवहार है।
तुर्की के विदेश मंत्रालय ने कहा कि इतिहास और क्षेत्र के लोगों की अंतरात्मा इसराइल के साथ समझौते पर संयुक्त अरब अमीरात के 'ढोंगी व्यवहार' को कभी नहीं भूल पाएगी क्योंकि अपने हितों के लिए उसने यह निर्णय लिया है।
एक लिखित बयान में कहा गया है कि 'फ़लस्तीनी लोग और प्रशासन इस समझौते के ख़िलाफ़ एक सख़्त प्रतिक्रिया देने को लेकर सही थे।'
''ये बेहद चिंताजनक है, यूएई को अरब लीग द्वारा विकसित 'अरब शांति योजना' के साथ चलना चाहिए था। यह ज़रा भी विश्वसनीय नहीं है कि इस तीन-तरफ़ा घोषणा को फ़लस्तीनी लोगों के फ़ायदे का बताया जा रहा है।''
तुर्की के इसराइल के साथ राजनयिक और व्यापारिक संबंध हैं, लेकिन वर्षों से ये संबंध तनावपूर्ण हैं।
2010 में इसराइल के सैनिकों ने ग़ज़ा पट्टी पर एक नाकाबंदी को तोड़ने की कोशिश कर रहे 10 तुर्क कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी थी जो फ़लस्तीनी इस्लामवादी आंदोलन- हमास द्वारा शासित है।
अरब देशों में यूएई इसराइल के साथ संबंध बहाल करने वाला मिस्र (1979) और जॉर्डन (1994) के बाद तीसरा देश बन गया है।
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