भारत के सुप्रीम कोर्ट का बुलडोज़र एक्शन पर सख़्त रुख़, सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सोमवार, 2 सितम्बर 2024
भारत के कई राज्यों में अभियुक्तों की संपत्ति के ख़िलाफ़ कथित तौर पर बुलडोज़र एक्शन की कार्रवाई करने के मामले को लेकर भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 2 सितम्बर 2024 को सख़्त टिप्पणी किया।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथ की पीठ ने कहा कि किसी का घर सिर्फ़ इसलिए कैसे ध्वस्त किया जा सकता है क्योंकि वह अभियुक्त है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथ की बेंच ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट दिशानिर्देश तय करेगा जिसके आधार पर ही जब भी तोड़फोड़ की कार्रवाई की ज़रूरत होगी तो उसी आधार पर वो की जाएगी।
जस्टिस बीआर गवई ने भारत के राज्य उत्तर प्रदेश सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा, "किसी का घर केवल इसी आधार पर कैसे ढहाया जा सकता है कि वो किसी मामले में अभियुक्त है?"
इसके आगे जस्टिस गवई ने कहा, "कोई व्यक्ति दोषी भी है तो बिना क़ानून की निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना उसके घर को ध्वस्त नहीं किया जा सकता।''
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसी भी इमारत को ढहाने की कार्रवाई इसलिए नहीं की गई है कि वो शख़्स किसी अपराध में अभियुक्त था।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 'हमने एफिडेविट के माध्यम से दिखाया है कि नोटिस काफ़ी पहले ही भेजा गया था।'
तुषार मेहता ने विस्तार से बताते हुए कहा कि ढहाने की प्रक्रिया एक स्वतंत्र मामला है जिसका किसी भी अपराध से कोई संबंध नहीं है।
वहीं दूसरी ओर याचिकाकर्ताओं के वकील दुष्यंत दवे और सीयू सिंह ने इसके जवाब में कहा कि घर इस कारण ध्वस्त किए गए क्योंकि वो किसी मामले के अभियुक्त हैं।
बेंच ने इसी दौरान मौखिक तौर पर कहा कि किसी भी इमारत को ढहाने के लिए क़ानून मौजूद हैं, लेकिन इसका ‘अधिक बार उल्लंघन’ देखा गया है।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ये भी साफ़ कहा है कि, "हम पूरे देश के लिए दिशानिर्देश तय करेंगे, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि किसी भी अनाधिकृत निर्माण को संरक्षण देंगे।''
बेंच ने दोनों पक्षों से कहा है कि वो इस मामले में दिशानिर्देश तय करने के लिए सुझाव के साथ उसके पास आएं और इस मामले की अगली सुनवाई 17 सितंबर 2024 को तय की गई है।
सुप्रीम कोर्ट की सोमवार, 2 सितम्बर 2024 की कार्यवाही पर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अपना मत रखा है।
सोशल मीडिया साइट एक्स पर राहुल गांधी ने पोस्ट किया, ''भाजपा की असंवैधानिक और अन्यायपूर्ण बुलडोज़र नीति पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी स्वागत योग्य है। बुलडोज़र के नीचे मानवता और इंसाफ को कुचलने वाली भाजपा का संविधान विरोधी चेहरा अब देश के सामने बेनक़ाब हो चुका है।''
राहुल गांधी ने कहा कि 'त्वरित न्याय' की आड़ में 'भय का राज' स्थापित करने की मंशा से चलाए जा रहे बुलडोज़र के पहियों के नीचे अक्सर बहुजनों और गरीबों की ही घर-गृहस्थी आती है।
राहुल गांधी ने उम्मीद जताई कि सुप्रीम कोर्ट इस अति संवेदनशील विषय पर स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करेगा।
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने भी इस मामले पर टिप्पणी की है।
प्रशांत भूषण ने एक्स पर लिखा, "सुप्रीम कोर्ट की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उसने क़ानून के शासन के लिए इस ख़तरे को आख़िरकार समझा है। इंसाफ़ को ढहाने के लिए बुलडोज़र का इस्तेमाल किया जा रहा है।''
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया वेबसाइट एक्स पर पोस्ट किया है।
अखिलेश यादव ने लिखा है- ‘अन्याय के बुलडोज़र’ से बड़ा होता है, ‘न्याय का तराज़ू’।
कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद उदित राज ने भी इस मामले पर अपना बयान दिया है।
उदित राज ने कहा कि आरोपी हो या आरोप साबित हो जाए, जब बुलडोज़र की कार्रवाई चल गई तो फिर अदालत और संविधान की ज़रूरत क्या है।
उदित राज ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से कहा, ''ये बर्बर युग की याद दिलाता है कि देश में तानाशाही है और संविधान है ही नहीं। अदालत के द्वारा ये फ़ैसला लिया जाना चाहिए कि घर गिराया जाना चाहिए या नहीं, जेल जाना है या नहीं, फ़ाइन लगना है या नहीं।''
उदित राज ने कहा, "नेताओं या हुकूमत के कहने से अगर अधिकारी लोग ही फ़ैसला करने लगेंगे तो फिर संविधान, अदालत और क़ानून की किताब की क्या ज़रूरत है।"
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