भारतीय रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया की तिमाही रिपोर्ट में आम लोगों पर नोटबंदी के व्यापक असर की तस्वीर सामने आई है। 'हाउसहोल्ड फायनेंशियल एसेट्स एंड लायबलिटीज' नाम से जारी रिपोर्ट में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 500 और 1000 के पुराने नोटों को वापस लेने के फैसले का स्पष्ट प्रभाव दिखा है।
आर बी आई की रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर, 2016 में ग्रॉस फायनेंशियल एसेट्स (सकल वित्तीय संपत्तियां) का कुल मूल्य 141 ट्रिलियन रुपये था। दिसंबर, 2016 तक इसमें चार ट्रिलियन रुपये की कमी आई और यह आंकड़ा 137 ट्रिलियन तक पहुंच गया।
बता दें कि पीएम मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा की थी। हाउसहोल्ड फायनेंशियल एसेट्स आउटस्टैंडिंग अमाउंट में भी छह फीसद की कमी दर्ज की गई। वर्ष 2017 की अंतिम तिमाही में भी यह आंकड़ा सितंबर, 2016 के मुकाबले काफी कम है।
हालांकि, नोटबंदी के बाद भारतीय लोगों में बचत के बजाय निवेश की प्रवृत्ति ज्यादा पाई गई है। आर बी आई की रिपोर्ट में कहा गया है, ''भारतीय लोग आमतौर पर बचत करने वाले और अर्थव्यवस्था में वित्तीय संसाधन की आपूर्तिकर्ता के तौर पर जाने जाते हैं। हालांकि, वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही में नेट फायनेंशियल एसेट्स में नकारात्मक बदलाव दिखा है जो नोटबंदी के प्रभाव को दर्शाता है।''
बता दें कि फायनेंशियल एसेट्स के तहत बैंक डिपोजिट, बांड्स, इंश्योरेंस एसेट्स और स्टॉक्स आदि आते हैं। अन्य एसेट्स की तुलना में फायनेंशियल एसेट्स ज्यादा लिक्विड होते हैं।
नोटबंदी के बाद हाउसहोल्ड के फायनेंशियल एसेट्स के स्वरूप में भी उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिला है। सितंबर, 2017 में जी डी पी (सकल घरेलू उत्पाद) की तुलना में करेंसी होल्डिंग्स में भी गिरावट दर्ज की गई है। नोटबंदी से पहले यह जहां 10.6 फीसद था, वहीं बड़े नोटों को वापस लेने की घोषणा के बाद यह आंकड़ा 8.7 फीसद तक पहुंच गया। इसका मतलब यह हुआ कि लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसे पहले के मुकाबले कम हो गए।
हालांकि, नोटबंदी के बाद हाउसहोल्ड में बैंक में पैसे रखने के बजाय निवेश करने की प्रवृत्ति में वृद्धि देखी गई। नोटबंदी के पहले 10.6 फीसद (जी डी पी की तुलना में) हाउसहोल्ड ने म्यूचुअल फंड में निवेश किया था। सितंबर, 2017 में यह आंकड़ा 12.5 फीसद तक पहुंच गया। करेंसी होल्डिंग में गिरावट का असर म्यूचुअल फंड में निवेश के तौर पर सामने आया। लोग करेंसी होल्डिंग का इस्तेमाल फायनेंशियल मार्केट में करने लगे।
इसके अलावा लोगों के डिस्पोजेबल इन्कम (खर्च योग्य आय) में भी कमी दर्ज की गई। इसका सीधा असर बाजार पर देखने को मिला। दूसरी तरफ, केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, घरेलू बचत में तकरीबन चार फीसद की गिरावट आई है।
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