पूरे भारत में (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) एक टैक्स सिस्टम जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विस टैक्स 1 जुलाई से लागू हो गया है। जीएसटी परिषद ने सभी वस्तुओं और सेवाओं को चार टैक्स स्लैब (5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत) में विभाजित किया है। जीएसटी परिषद ने 12011 वस्तुओं को इन चार वर्गों में रखा है।
आम जनता के लिए उपयोगी करीब 80 वस्तुओं पर शून्य टैक्स (कर मुक्त ) लगेगा। सिगरेट, शराब, बिजली और पेट्रोलियम उत्पादों (पेट्रोल, डीजल इत्यादि) को अभी जीएसटी से बाहर रखा गया है।
लेकिन जीएसटी लागू करने के अलावा मोदी सरकार के एक कदम ने आम जनता को दोहरा तमाचा मारा है। दरअसल जीएसटी के बाद बैंकिंग सर्विसेज महंगी हो गई हैं क्योंकि अभी इन पर 15 प्रतिशत टैक्स देना पड़ता था, जबकि जीएसटी में 18 प्रतिशत टैक्स तय किया गया है।
यानी 1 जुलाई से डिमांड ड्राफ्ट, फंड ट्रांसफर जैसी सेवाएं महंगी हो गई हैं। इसी तरह, टर्म पॉलिसीज, एंडोमेंट पॉलिसीज और यूलिप्स आदि के इंश्योरेंस प्रीमियम भी महंगे हो गए हैं।
इसके अलावा टेलिफोन बिल पर मौजूदा 15 प्रतिशत की बजाय 18 प्रतिशत जीएसटी लगेगा इसलिए फोन का बिल भी ज्यादा आएगा।
वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार ने छोटे निवेशकों को झटका देते हुए स्मॉल सेविंग स्कीम के तहत आने वाले पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ) अकाउंट, किसान विकास पत्र (केवीपी) और राष्ट्रीय बचत पत्र (एनएससी) पर मिलने वाले ब्याज में कटौती की है।
30 जून को सरकार ने इन छोटे निवेशों पर 10 बेसिस प्वाइंट ब्याज दर में कटौती की है। अब पीपीएफ और एनएससी पर 7.8 फीसदी ब्याज मिलेगा, जबकि केवीपी पर 7.5 फीसदी ब्याज मिलेंगे। इनके अलावा वरिष्ठ नागरिकों की बचत योजनाओं और सुकन्या समृद्धि योजना की ब्याज दरें भी फिर से निर्धारित की गई हैं। ये व्यवस्था भी एक जुलाई से ही लागू हो गई है।
इसका सीधा-सीधा मतलब यह हुआ कि आपको सर्विसेज के लिए ज्यादा पैसा देना होगा और जो पैसा आप बचत के लिए निवेश कर रहे हैं, उस पर आपको कम ब्याज दर से पैसा मिलेगा।
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