लेबनान के प्रधानमंत्री हसन दियाब ने बेरूत में गत मंगलवार को हुए धमाके की वजह से अपनी पूरी कैबिनेट के साथ इस्तीफ़ा दे दिया है।
प्रधानमंत्री हसन दियाब ने सोमवार शाम राष्ट्रीय टेलीविज़न पर राष्ट्र के नाम अपने संदेश में ख़ुद इसकी घोषणा की।
हालांकि इससे पहले समाचार एजेंसियों के अनुसार ये ख़बर आ गई थी कि उन्होंने अपना इस्तीफ़ा लेबनान के राष्ट्रपति माइकल आउन को सौंप दिया है और इसकी आधिकारिक घोषणा जल्द ही होने वाली है।
उनके इस्तीफ़ा देने से पहले उनके कई मंत्रियों ने भी अपना इस्तीफ़ा दिया था। हालाँकि, ऐसी माँग उठ रही थीं कि पूरी सरकार ही इस्तीफ़ा दे।
लेबनान की जनता सरकार पर भ्रष्टाचार और अयोग्य होने का आरोप लगा रही थी।
नाराज़ लोग लगातार तीसरे दिन भी प्रदर्शन कर रहे थे और पुलिस के साथ लोगों की झड़प भी हुई।
बरसों से बंदरगाह पर असुरक्षित तरीक़े से रखे हुए 2750 टन अमोनियम नाइट्रेट के विस्फोट कर जाने के कारण धमाका हुआ जिसमें 200 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई थी और हज़ारों लोग घायल हुए थे।
राष्ट्रपति ने सरकार से जब तक नई कैबिनेट का गठन नहीं हो जाता है उस वक़्त तक पद पर बने रहने के लिए कहा है।
प्रधानमंत्री हसन दियाब को इसी साल जनवरी में कई महीनों के गतिरोध के बाद प्रधानमंत्री बनाया गया था।
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने देश को बचाने के लिए बहुत आगे बढ़ कर एक रोडमैप तैयार किया था, लेकिन भ्रष्टाचार के कारण ऐसा नहीं हो सका।
किसी का नाम लिए बग़ैर प्रधानमंत्री ने कहा, ''लेबनान में भ्रष्टाचार 'राष्ट्र से भी बड़ा है' और एक बहुत ही मज़बूत और कंटीली दीवार बदलाव से हमें अलग करती है। एक ऐसी दीवार जो कि ऐसे वर्ग के ज़रिए चारों तरफ़ से घेर दी गई है जो वर्ग अपने हितों की रक्षा के लिए हर गंदे तरीक़े अपना रहा है।''
उन्होंने आगे कहा कि ''उन लोगों को पता था कि हमलोग उनके लिए ख़तरा हैं और अगर ये सरकार कामयाब होती तो इसका अर्थ था कि लंबे अर्से से सत्ताधारी इस वर्ग में सचमुच बदलाव होता जिसके भ्रष्टाचार ने देश का गला घोंट रखा है।''
उन्होंने अपने संदेश में कहा, ''उस त्रासदी के लिए (जो कि सात साल से छुपी हुई थी) ज़िम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय करने और असली बदलाव की लोगों की इच्छा का हमलोग आज पालन कर रहे हैं।''
संसद को अब नया प्रधानमंत्री चुनना होगा, जिसमें बीबीसी संवाददाता के अनुसार वहीं संकीर्ण राजनीति की प्रक्रिया अपनाई जाएगी जो कि समस्या की जड़ है।
लेबनान में विभिन्न धार्मिक गुटों की नुमाइंदगी कर रहे लोगों के बीच सत्ता का बंटवारा होता है।
1975 से लेकर 1990 तक चले गृहयुद्ध के कारण कई लड़ाके सरदारों ने राजनीति में क़दम रखा था और अब भी लेबनान के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में उनका काफ़ी दबदबा है।
सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे कई लोग देश में भ्रष्टाचार के लिए इसी सिस्टम को ज़िम्मेदार मानते हैं।
पिछले सप्ताह मंगलवार को लेबनान की राजधानी बेरूत में हुए धमाके में मरने वालों की संख्या बढ़कर 220 हो गई है और बेरूत के गवर्नर मरवान अबूद के अनुसार अभी भी 110 लोग लापता हैं। इनमें से अधिकांश विदेशी कर्मचारी और ट्रक ड्राइवर हैं।
इस धमाके में क़रीब छह हज़ार लोग घायल भी हुए हैं।
इस धमाके के बाद लेबनान में आर्थिक संकट भी गहराता जा रहा है। इस धमाके की वजह लेबनान के राजनीतिक वर्ग में व्याप्त भ्रष्टाचार और कुशासन को माना जा रहा है, शहर के मुख्य हिस्से में विस्फोटक रखने की वजहों को लेकर भी सवाल पूछा जा रहा है।
इस वजह से बेरूत की सड़कों पर हज़ारों लोग प्रदर्शन कर रहे हैं। सोमवार को भी लगातार तीसरे दिन प्रदर्शनकारियों और पुलिस में हिंसक झड़प देखने को मिली है।
लेबनान के प्रधानमंत्री बता चुके हैं कि धमाके की वजह बेरूत बंदरगाह पर पिछले छह सालों से रखा गया अमोनियम नाइट्रेट था। बेरूत बंदरगाह पर 2,750 टन अमोनियम नाइट्रेट मौजूद था, जिसमें आग लगने के चलते धमाका हुआ था।
इस धमाके के चलते बेरूत में कम से कम तीन अरब डॉलर के नुक़सान का अंदेशा जताया जा रहा है, लेकिन इस धमाके के असर के चलते पूरे लेबनान की अर्थव्यवस्था को 15 अरब डॉलर का नुक़सान होने की आशंका जताई जा रही है।
लेबनान के संकट को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां भी मानवीय सहायता मुहैया करा रहीं हैं जबकि फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमुएनल मैक्रों के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने लेबनान को 29.7 करोड़ डॉलर की मदद देने का फ़ैसला भी लिया है।
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