इसराइल पर ग़ज़ा में जनसंहार का मुकदमा, इंटरनेशनल कोर्ट ने क्या कहा?

 26 Jan 2024 ( परवेज़ अनवर, एमडी & सीईओ, आईबीटीएन ग्रुप )
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इसराइल पर ग़ज़ा में जनसंहार का मुकदमा, इंटरनेशनल कोर्ट ने क्या कहा?

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024 को नीदरलैंड्स के हेग में मौजूद इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में इसराइल के ख़िलाफ़ ग़ज़ा में फ़लस्तीनियों के ख़िलाफ़ नरसंहार करने के आरोपों की सुनवाई हुई ।

ये मुकदमा दक्षिण अफ़्रीका ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में दायर किया था।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने दक्षिण अफ़्रीका की तरफ़ से प्रस्तावित नौ आपात कदमों पर विचार किया। लेकिन वो दक्षिण अफ़्रीका के इसराइल पर जनसंहार के आरोपों पर विचार नहीं करेगी। इसराइल इन आरोपों से इनकार करता रहा है।

अदालत ने जिन प्रस्तावित कदमों पर विचार किया, उनमें इसराइल का ग़ज़ा में तत्काल सैन्य अभियान निलंबित किया जाना शामिल है।

जज जोआन डोनोगाउ ने कहा कि अदालत लोगों की मौतों और पीड़ा को लेकर 'गंभीर रूप से चिंतित' है।

जज जोआन डोनोगाउ ने कहा कि मौजूदा मामले का दायरा सीमित है।

जज ने सुनवाई के दौरान हमास के इसराइल पर सात अक्टूबर 2023 को हुए हमले का भी ज़िक्र किया। जज ने कहा कि इसराइल पर लगे कुछ आरोप जेनोसाइड कन्वेंशन के प्रावधानों के अंदर हैं।

जज ने कहा कि जेनोसाइड कन्वेंशन में शामिल कोई भी पार्टी दूसरे देश के ख़िलाफ़ मामला दायर कर सकता है इसलिए दक्षिण अफ्ऱीका के पास ये मुकदमा दायर करने का कानूनी आधार है।

सुनवाई के दौरान जज ने संयुक्त राष्ट्र आपत राहत कॉर्डिनेटर मार्टिन ग्रिफिथ्स का बयान भी कोट किया कि 'ग़ज़ा मौत और निराशा का प्रयाय बन चुका है।''

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस के बाहर इसराइली और फ़लस्तीनी समर्थक भी जमा हुए हैं।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में 11 जनवरी 2024 से इसराइल के ख़िलाफ़ दर्ज मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई थी।

दक्षिण अफ़्रीका का इसराइल पर जनसंहार का आरोप

दक्षिण अफ्रीका ने 84 पृष्ठों की एक अपील इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि इसराइल की कार्रवाई की प्रकृति जनसंहार की है क्योंकि उनकी मंशा, ग़ज़ा में फ़लस्तीनी लोगों की अधिक से अधिक तबाही है।

इसमें कहा गया है कि जनसंहार की कार्रवाई में फ़लस्तीनी लोगों की हत्या, गंभीर मानसिक और शारीरिक क्षति पहुंचाना और ऐसे हालात पैदा करना शामिल है, जिसका उद्देश्य "सामूहिक रूप से उनकी तबाही है।''

आईसीजे में दायर अपील के अनुसार, इसराइली अधिकारियों के बयानों में भी जनसंहार की मंशा झलकती है।

इसराइल ने जनसंहार के आरोप पर क्या कहा था?

इसराइली क़ानूनी सलाहकार ताल बेकर ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में कहा कि दक्षिण अफ़्रीका सच को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा है, वो इसराइल-फ़लस्तीन संघर्ष के बारे में "सच से परे व्यापक विवरण पेश कर रहा है।''

12 जनवरी 2024 को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में अपनी दलील शुरू करते हुए ताल बेकर ने ये स्वीकार किया कि ग़ज़ा में आम नागरिक जो कष्ट झेल रहे हैं वो "त्रासदी'' है।

हालांकि ताल बेकर ने ये भी कहा कि फ़लस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास "इसराइल और फ़लस्तीनियों को हो रहे नुक़सान को बढ़ाना" चाहता है जबकि "इसराइल इसे कम करना चाहता है''।

ताल बेकर ने कहा, "ये दुख की बात है कि दक्षिण अफ़्रीका ने कोर्ट के सामने बेहद तोड़-मरोड़ कर तथ्यात्मक और क़ानूनी तस्वीर को पेश किया है। ये पूरा मामला मौजूदा संघर्ष की हकीकत के संदर्भ से हटकर और जोड़-तोड़ वाले विवरण के आधार पर जानबूझकर बनाया गया है।''

इसराइल पर जनसंहार का मुकदमा, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने फैसले में क्या कहा?

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

इसराइल के हमले झेल रहे ग़ज़ा में तत्काल संघर्ष विराम करने के दक्षिण अफ़्रीका के आग्रह पर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस यानी आईसीजे ने सहमति नहीं जताई है।

ये कुछ ऐसा है जिससे दक्षिण अफ़्रीका और फ़लस्तीनी लोगों को निराशा हो सकती है।

हालांकि, सुनवाई कर रहे 17 जजों में से ज़्यादातर ने ये कहा कि इसराइल को अपनी क्षमता के अनुसार हर वो चीज करनी चाहिए जिससे फ़लस्तीनी लोगों की मौतों, शारीरिक या मानसिक तौर पर क्षति पहुंचाने से बचाया जा सके।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने ये भी कहा कि इसराइल को कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए जो फ़लस्तीनी महिलाओं को बच्चों को जन्म देने में बाधा पहुंचाता हो।

जनसंहार पर अदालत का ये अंतिम फ़ैसला नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस बारे में निर्णय लेने में कई साल लगेंगे। इसराइल को अब इस पर निर्णय लेना है।

आईसीजे के फ़ैसले बाध्यकारी तो हैं लेकिन इसको लागू करने वाले के लिए कोई व्यवस्थित सिस्टम नहीं है। संघर्षविराम के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक प्रयास जारी हैं।

ग़ज़ा में मानवीय सहायता पहुंचाने को और बेहतर करने के भी प्रयास हो रहे हैं तो ऐसे में इसराइल अदालत के सामने ये तर्क रख सकता है कि वो अदालत की मांगों पर तो पहले से ही कदम उठा रहा है।

 

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