हिंदी विश्वविद्यालय में छुट्टी लेना अनुसूचित जनजाति के छात्र को महँगा पड़ा, पीएचडी रद्द हुई। हिंदी विश्वविद्यालय ने आनन-फानन में जाँच कमेटी गठित की। विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एल कारूण्यकारा पर पीडीपी (पवित्र दलित परिवार) संस्था के नाम पर धन उगाही का आरोप लगा।
महाराष्ट्र के वर्धा में महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के दलित एवं जनजाति अध्ययन केन्द्र के अनुसूचित जनजाति के पीएचडी शोधार्थी भगत नारायण महतो जो मूल रूप से बिहार के पश्चिमी चम्पारण की थारू जनजाति से ताल्लुक रखते है। उनका प्रवेश दिसम्बर 2017 में इस केंद्र में पीएचडी शोधार्थी के रूप हुआ था और वह इसी केंद्र से एम फिल के टॉपर भी रहें हैं, उनकी पीएचडी अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित एवं पंजीयन पूर्व सेमिनार प्रस्तुत न करने का आरोप लगाते हुए केंद्र निदेशक प्रोफेसर एल कारूण्यकारा की अनुशंसा पर निरस्त कर दिया गया है।
जबकि शोधार्थी भगत नारायण महतो ने आरोप को निराधार बताते हुए अपने पक्ष को तथ्य सहित सभी सम्बंधित दस्तावेज प्रस्तुत करते हुए कहा है कि प्रवेश की तिथि एवं जब भी उसका अवकाश स्वीकृत या अस्वीकृत हुआ उसने केंद्र निदेशक से अनुमति ली थी तथा उनका यह भी कहना था कि उसे पूर्व सेमीनार प्रस्तुत करने के सम्बन्ध में विभाग के द्वारा उसे कोई जानकारी नहीं दी गई थी जिसे किसी भी रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति मानने को तैयार नहीं है। इसके विपरीत छात्र पर लापरवाह एवं पढ़ने में कमजोर छात्र के श्रेणी में रख रहे हैं। उसके पी एच डी प्रवेश निरस्त को सही बताने में लगे हुए हैं। परन्तु कुलपति गिरिश्वर मिश्र को यह ज्ञात नहीं है कि उनके ही विश्वविद्यालय के अपने विभाग में एम फिल प्रथम स्थान प्राप्त करने वाला भगत नारायण महतो एक होनहार छात्र है।
पीड़ित छात्र भगत नारायण ने कहा, ''उसके केंद्र निदेशक प्रोफेसर एल कारुण्यकारा जो इस पीएचडी प्रवेश निरस्त के मुख्य कर्ताधर्ता है। उन्होंने सीधे तौर पर आरोप लगाकर मेरा प्रवेश निरस्त कर दिया और विश्वविद्यालय प्रशासन ने बिना किसी जाँच पड़ताल किये ही निरस्त के आदेश को स्वीकृत कर लिया तथा मुझे अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया।''
शोधार्थी भगत नारायण महतो के पिता की मृत्यु के उपरांत घर की जिम्मेदारी उस के ऊपर ही थी जिस कारण छात्र अपनी पढाई के साथ परिवार का भी ख्याल रख रहा है। समस्त घटनाक्रम प्रवेश के उपरांत आरम्भ होती है जिसमें छात्र को किन्ही कारणवश अलग-अलग तिथि में अपने घर पश्चिमी चम्पारण (बिहार) जाना पड़ जाता है। घर जाने से पूर्व विश्वविद्यालय की सभी संवैधानिक प्रक्रिया का अनुपालन करता है जिसमें घर जाने से पहले अवकाश के लिए आवेदन देना आदि शामिल है। जिस अवकाश को आधार बनाकर छात्र का प्रवेश निरस्त किया गया है, उस अवकाश लिए भी छात्र ने 20 अप्रैल 2018 को आवेदन दिया था जिसे उसके केन्द्र निदेशक के कार्यालय द्वारा 25 अप्रैल 2018 को ई-मेल के माध्यम से अस्वीकृत करने की सूचना दी गई। छात्र के अपने गृह स्थान बिहार के पश्चिमी चम्पारण पहुँच जाने एवं इंटरनेट की सुविधा के अभाव के कारण विलम्ब से अवकाश निरस्त की सूचना प्राप्त हुई। जब छात्र को अवकाश निरस्त की सूचना प्राप्त हुई तो तत्पश्चात वर्धा (महाराष्ट्र) आने के लिए ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिलना, आर्थिक तंगी और पारिवारिक समस्या के कारण विश्वविद्यालय पहुँचने में विलम्ब हुआ जिसके बाद छात्र ने कुलपति से इसके लिए क्षमा माँगी।
पीएचडी प्रवेश निरस्त का दूसरा कारण पंजीयन पूर्व सेमीनार प्रस्तुति को आधार बताया गया है। छात्र के अनुसार, इससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार की सूचना विश्वविद्यालय की वेबसाइट, ई-मेल के माध्यम एवं अन्य किसी भी प्रकार के संचार माध्यम से छात्र को सूचना नहीं दी गई। विश्वविद्यालय पहुँचने के तुरंत बाद छात्र के द्वारा पंजीयन पूर्व सेमीनार प्रस्तुति के विषय में केंद्र सहायक से पता करने पर मालूम हुआ कि 2017 बैच के पीएचडी शोधार्थी का पंजीयन पूर्व सेमीनार हुआ ही नहीं है।
इस विषय को लेकर विश्वविद्यालय के छात्र पीड़ित शोधार्थी भगत नारायण महतो को लेकर दिनांक 25 मई 2018 को कुलपति से मिले तथा समस्त घटनाक्रम से उन्हें अवगत कराया एवं इससे सम्बंधित अपना पक्ष रखते हुए आवेदन पत्र दिया और आवश्यक कार्यवाही करने का आग्रह किया।
केंद्र निदेशक प्रोफेसर एल कारुण्यकारा के सम्बन्ध में अवैध वसूली जो कि पीडीपी (पवित्र दलित परिवार) के नाम पर प्रत्येक एम फिल के छात्र से 500 रूपए प्रति माह, पीएचडी छात्र से 1000 रूपये प्रति माह एवं नेशनल फेलोशिप, आर जी एन एफ एवं जे आर एफ पाने वाले छात्र से 3000 रूपये प्रति माह की अवैध वसूली के बारे में भी अवगत कराया। जिसके बारे में विभाग में पढने वाले छात्रों ने नाम नहीं बताने की शर्त पर खुलासा किया। इन सभी बातों को बेमन से कुलपति ने सुना और कहा कि हम इस विषय पर 28 मई 2018 को जवाब देंगे।
इसी क्रम में फिर से छात्र राजेश सारथी, राजू कुमार, राम सुन्दर शर्मा और अनुपम राय पीड़ित शोधार्थी के साथ कुलपति से मिलने गये तथा कार्यवाही के बारे में जानना चाहा तो कुलपति उल्टे ही छात्र को लापरवाह एवं प्रोफेसर एल कारुण्यकारा की पीएचडी प्रवेश निरस्त निर्णय को सही बताने में लगे।
अंतत: छात्रों ने पूरे पीएचडी निरस्त की प्रक्रिया के असंवैधानिक पहलू से कुलपति को अवगत कराया तथा कहा कि किसी भी छात्र की पीएचडी निरस्त करने का अधिकार बीओएस (बोर्ड ऑफ़ स्टडीज़) के क्षेत्र में नहीं आता है। उसे सिर्फ छात्र के विषय से सम्बंधित एवं उसे शोध निदेशक उपलब्ध कराने का अधिकार है। छात्र को पीएचडी में रखना या न रखना विश्वविद्यालय के अकादमिक परिषद् के अधिकार क्षेत्र में आता है।
आश्चर्य की बात ये भी है कि विश्वविद्यालय के अकादमिक परिषद के किसी भी सदस्य के साथ पीएचडी निरस्त से सम्बंधित किसी प्रकार का बैठक नहीं किया गया जिसमें छात्र के पक्ष को जाना जा सके। छात्र के केंद्र निदेशक प्रोफेसर एल कारूण्यकारा ने सभी नियमों को ताक पर रखते हुए गलत तरीके छात्र के पीएचडी प्रवेश को निरस्त किया तथा छात्र को अकादमिक परिषद के सामने अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया।
28 मई 2018 को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इस सन्दर्भ में प्रोफेसर मनोज कुमार की अध्यक्षता में प्रोफेसर हनुमान प्रसाद शुक्ल, प्रोफेसर प्रीति सागर एवं डॉ सुरजीत कुमार सिंह की चार सदस्यीय जाँच समिति का गठन किया गया है तथा एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया, लेकिन जानकार सूत्रों की माने तो प्रोफेसर मनोज कुमार और प्रोफेसर प्रीति सागर आधिकारिक रूप से छुट्टी पर हैं तो ऐसी जाँच समिति क्या रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी, इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है।
इस घटना के सन्दर्भ में जब हमने प्रोफेसर एल कारूण्यकारा का पक्ष जानना चाहा तो उनके द्वारा फोन रिसीव नहीं किया गया एवं कार्यकारी कुलसचिव कादर नवाज़ खान का फोन स्विच ऑफ़ मिला।
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