धर्म परिवर्तन कर बौद्ध बने दलितों का जीवन और शैक्षणिक स्तर बेहतर हुआ

 02 Jul 2017 ( परवेज़ अनवर, एमडी & सीईओ, आईबीटीएन ग्रुप )
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भारत में बौद्ध धर्म मानने वाले लोगों की संख्या 84 लाख के करीब है जिसमें 87 फीसदी लोगों ने धर्म परिवर्तन किया है। धर्म परिवर्तन करके बौद्ध धर्म अपनाने वालों में अधिकांश लोग दलित समुदाय के हैं जो हिंदू धर्म के जातिगत उत्पीड़न से बचने के लिए बौद्ध बने। शेष 13 फीसदी बौद्ध आबादी पूर्वोत्तर राज्यों और उत्तरी हिमालय के इलाकों में रहने वाली पारंपरिक बौद्ध समुदाय से आती है।

धर्म परिवर्तन करके बौद्ध धर्म अपनाने वाले ऐसे लोगों को नव-बौद्ध कहा जाता है और यह नव-बौद्ध समुदाय साक्षरता दर, नौकरियों में हिस्सेदारी तथा लिंगानुपात के मामले में आज हिंदू दलित समुदाय से बेहतर स्थिति में है। इंडिया स्पेंड द्वारा जनगणना-2011 के आंकड़ों के विश्लेषण में यह खुलासा हुआ है।

भारत में बौद्ध समुदाय का 87 फीसदी हिस्सा धर्म परिवर्तन करके बौद्ध बनी आबादी है और उसमें भी अधिकांश हिस्सा हिन्दू दलित समुदाय से आता है जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि बौद्ध धर्म के लोगों का विकास वास्तव में दलित समुदाय का विकास है।

भारत में बौद्ध धर्म मानने वालों का साक्षरता दर 81.29 फीसदी है जो 72.98 फीसदी के राष्ट्रीय दर से अधिक है। वहीं हिंदुओं में साक्षरता दर 73.27 फीसदी है, जबकि अनुसूचित जातियों में साक्षरता दर इससे काफी नीचे 66.07 फीसदी ही है।

सहारनपुर में पांच मई, 2017 को हुई सांप्रदायिक हिंसा में आरोपी संगठन भीम आर्मी के नेता सतपाल तंवर का कहना है, ''संगठन में मौजूद शीर्ष स्तर के अधिकतर दलित नेता बौद्ध हैं।''

भीम आर्मी बीते दिनों बड़ी संख्या में दलितों का धर्म परिवर्तन करा के बौद्ध धर्म अपनाने की मुहिम के चलते चर्चा में रही थी। तंवर कहते हैं, ''ऐसा इसलिए है क्योंकि जाति व्यवस्था की अपेक्षा बौद्ध धर्म उन्हें आत्मविश्वास प्रदान करता है।''

छत्तीसगढ़ में रहने वाली बौद्ध आबादी में साक्षरता 87.34 फीसदी है, जबकि महाराष्ट्र में 83.17 फीसदी और झारखंड में 80.41 फीसदी है।

गौरतलब है कि धर्म परिवर्तन करके बौद्ध बनाने वालों की सर्वाधिक संख्या महाराष्ट्र में है और इसके बाद मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश का नंबर आता है।

इस मामले में महाराष्ट्र का उदाहरण सबसे अनूठा है। महाराष्ट्र की कुल आबादी का 5.81 फीसदी हिस्सा बौद्ध है, जिनकी कुल जनसंख्या 65 लाख के करीब है और इस मामले में महाराष्ट्र सभी राज्यों से आगे है।

उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान के निर्माता बी. आर. अंबेडकर महाराष्ट्र के ही रहने वाले थे और उन्होंने 1956 में महाराष्ट्र में ही 60,000 समर्थकों के साथ धर्म परिवर्तन करके बौद्ध धर्म अपना लिया था।

जाति व्यवस्था के खिलाफ इस तरह का विरोध आज भी जारी है, हालांकि धर्म परिवर्तन कराने वालों की संख्या में जरूर गिरावट आई है। उत्तर प्रदेश में बौद्ध समुदाय के बीच साक्षरता 68.59 फीसदी है जो राज्य की औसत साक्षरता (67.68 फीसदी) से अधिक है और राज्य में निवास करने वाली अनुसूचित जातियों की साक्षरता (60.88 फीसदी) से काफी अधिक है। बौद्ध समुदाय में महिलाओं की साक्षरता दर (74.04 फीसदी) भी काफी अच्छी है जो पूरे देश में महिलाओं की साक्षरता दर 64.63 से काफी बेहतर है।

2011 में बौद्ध समुदाय के बीच लिंगानुपात प्रति 1,000 व्यक्ति पर 965 था, जबकि देशभर में अनुसूचित जातियों के बीच लिंगानुपात 945 था, वहीं लिंगानुपात का राष्ट्रीय दर 943 थी।

सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक नितिन तगाड़े ने कहा, ''कृषि भूमि की कमी या पारंपरिक पेशे की कमी के चलते महाराष्ट्र के दलितों ने नौकरियां हासिल करने के लिए शिक्षा का रास्ता चुना। इसलिए शिक्षा हासिल करने और शहरों की ओर रुख करने के मामले में वे दूसरे समुदायों से आगे रहे।''

 

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