चुनाव आयोग ने गुजरात में होने वाले विधान सभा चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं किया है, लेकिन उससे पहले ही गुजरात इलेक्शन मोड में आ चुका है।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बार-बार गुजरात का दौरा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक महीने में तीन बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं।
माना जा रहा है कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में गुजरात समेत पूरे भारत में जो लहर थी, वैसी लहर आज बीजेपी के पक्ष में नहीं है।
2014 के आम चुनावों में गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों पर बीजेपी की जीत हुई थी। इसके साथ ही बीजेपी की झोली में 60 फीसदी वोट गए थे, लेकिन मौजूदा दौर में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में काफी कमी आई है।
शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी को अपने गृह राज्य का दौरा बार-बार करना पड़ रहा है ताकि अपने गढ़ को वो बचा सकें।
दरअसल, नरेंद्र मोदी के गुजरात से दिल्ली जाने के बाद गुजरात बीजेपी में एक रिक्तता आई है। साथ ही राज्यस्तरीय शासन-तंत्र में भी मोदी की कमी महसूस हुई है। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद तीन साल में ही गुजरात में दो बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े हैं। पहले आनंदीबेन पटेल और अब विजय रुपाणी
गुजरात में हाल के दिनों में पाटीदार समाज के आरक्षण आंदोलनों ने भी पाटीदारों को बीजेपी से दूर करने में बड़ी भूमिका निभाई है। नौकरियों में आरक्षण की मांग को लेकर साल 2015 से ही पाटीदार समाज बीजेपी सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने नोटबंदी और जीएसटी लागू की जिससे भारत के आर्थिक विकास दर में गिरावट आई। इससे भी बीजेपी और पीएम मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है।
वर्ल्ड बैंक समेत कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने आगामी समय में भी अर्थव्यवस्था की रफ्तार कम रहने की आशंका जताई है। इसके अलावा बेरोजगारी और महंगाई की वजह से भी बीजेपी सरकार की लोकप्रियता और जनाधार में कमी आई है।
चूंकि गुजरात एक व्यापार प्रधान राज्य है, इसलिए अर्थव्यवस्था की रफ्तार का सीधा-सीधा असर यहां के जनमानस पर पड़ता है।
जानकार बताते हैं कि मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से गुजरात के व्यापारियों को घाटा उठाना पड़ा है। लिहाजा, उनका रुझान भी बीजेपी से हटकर कांग्रेस की तरफ हो सकता है।
इसके अलावा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप भी चुनावों में बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है।
पिछले कुछ सालों में गुजरात के अलग-अलग हिस्सों में दलितों पर हुई हिंसा की वजह से भी दलित समाज का बीजेपी से मोहभंग होना स्वभाविक है। ऊना और बड़ोदरा में बड़े पैमाने पर दलित इसकी दस्तक पहले ही दे चुके हैं।
आदिवासी समाज भी बीजेपी सरकार की नीतियों और कार्यों से गुस्से में है क्योंकि अभी तक उन्हें विकास के 'गुजरात मॉडल' का कोई लाभ हासिल नहीं हो सका है।
गुजरात में आबादी के हिसाब से पांचवा स्थान रखने वाले आदिवासी समाज बीजेपी को ही समर्थन देता रहा है।
लिहाजा, विधानसभा की कुल 182 सीटों में से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 27 में से 14 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार जीतते रहे हैं, लेकिन इस बार नर्मदा पर बने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने से डूब क्षेत्र में सबसे ज्यादा आदिवासी बहुल गांव ही आए हैं। उनका सही ढंग से विस्थापन नहीं हो सका है, इससे जनजातीय समुदाय में बीजेपी के खिलाफ आक्रोश है। इस वजह से माना जा रहा है कि उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हो सकता है।
इन्हीं वजहों से 22 सालों से सत्ता से दूर रहने वाली कांग्रेस को गुजरात में परिवर्तन की उम्मीद दिखाई दे रही है। राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल की जीत, गिरती अर्थव्यवस्था पर चौतरफा घिरी मोदी सरकार, दलित-आदिवासियों का बीजेपी से होता मोहभंग देख कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ताबड़तोड़ गुजरात दौरे कर रहे हैं। बीजेपी की तरह ही कांग्रेस सोशल मीडिया को हथियार के रूप में प्रयोग रही है। कांग्रेस गुजरात में धार्मिक, जातीय और अन्य लामबंदी कर सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही है।
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