योग गुरु से लेकर साबुन, तेल और दंत मंजन जैसे रोजमर्रा उत्पाद लाकर भारतीय बाजार में छा जाने वाले बाबा रामदेव आज किसी ब्रांड आइकन से कम नहीं हैं। उन्होंने अपना सिक्का कैसे जमाया, इसकी बुनियाद समझने के लिए हमें कुछ पीछे चलना पड़ेगा। साल था 2014। लोकसभा चुनाव के पहले की बात है। देश का पीएम चुना जाना था। नरेंद्र मोदी और भाजपा जीत के लिए जुगत लगा रही थी। ऐसे में बाबा ने अपने समर्थक मोदी के रथ की रफ्तार बढ़ाने के लिए सड़कों पर उतार दिए थे। जैसे-जैसे मोदी और उनके सिपाहसलारों का जनाधार मजबूत हुआ। ठीक वैसे ही बाबा भी कंज्यूमर प्रोडक्ट्स में पैठ जमाते गए। घर-घर में उनके पतंजलि प्रोडक्ट्स इस्तेमाल किए जाने लगे। भगवा चोला ओढ़े ही वह देश के सफल आंतरप्रिन्योर की श्रेणी में शुमार हो गए।
कहानी यहां से शुरू होती है। 23 मार्च 2014 की भरी दोपहर थी। लोकसभा चुनाव होने में दो हफ्ते बचे थे। मोदी एक जनसभा रैली में थे। उनके साथ यहां बाबा रामदेव भी मंच पर बैठे थे। वह मोदी के कान में कुछ फुसफुसाए। चंद मिनटों बाद उन्होंने जनता से मोदी के लिए वोट की अपील की। इस रैली के दो महीने बाद नतीजे आए। कांग्रेस का सफाया हो चुका था। मोदी के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में आई।
न्यूज़ एजेंसी रायटर में प्रकाशित 'एस मोदी एंड हिस राइट विंग बेस राइज़, सो टू डज़ ए सेलेब्रिटी योगा टायकून' इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट के मुताबिक, नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद बाबा रामदेव की कंपनी को भाजपा शासित राज्यों में भूमि अधिग्रहण में तकरीबन 46 मिलियन डॉलर (करीब 300 करोड़ रुपए) की छूट मिली थी।
दिल्ली में एक रैली के तीन हफ्ते बाद रामदेव के ही एक ट्रस्ट ने यूट्यूब पर वीडियो जारी किया था। उसमें भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता हस्ताक्षर किए हुए शपथ पत्र के साथ पोज़ देते दिखे थे। पत्र में गाय की रक्षा और भारत में चीज़ें स्वदेशी बनाने पर जोर देने जैसी बातें शामिल थीं। इस पर विदेश मंत्री, वित्त मंत्री और परिवहन मंत्री के हस्ताक्षर थे, जो वीडियो में भी है।
रामदेव उस वीडियो में कहते दिख रहे हैं कि उन्होंने जो करोड़ों लोगों में बदलाव की उम्मीद जगाई है। लोग उन्हें पूरा होते देखना चाहते हैं। इसी कारण भाजपा नेताओं ने शपथपत्र पर दस्तखत किए। वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने भी उस पर हस्ताक्षर किए थे। आडवाणी के पीए दीपक चोपड़ा का कहना था कि वह पार्टी का कार्यक्रम था और भाजपा के सभी वरिष्ठ नेताओं ने उस पर दस्तखत किए थे। वहीं, पंतजलि के जानकार ने इस बाबत बताया कि वह रामदेव के समर्थन की बात थी, इसिलए वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने अपने नाम दिए थे।
हरिद्वार में बीते साल एक इंटरव्यू में बाबा रामदेव ने कहा था कि 200 साल तक ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश को लूटा। उसी तरह ये मल्टीनेशनल कंपनियां हमारे देश में अपने नुकसानदेह केमिकल प्रोडक्ट्स बेच रही हैं। उनसे बच कर रहें। रामदेव पीएम का जिक्र आते ही बेहद भावुक हो जाते हैं। वह मोदी से अपने संबंधों की चर्चा करते हुए कहते हैं कि मोदी जी मेरे करीबी मित्र हैं। हालांकि, पीएमओ में जब इस स्टोरी के लिए संपर्क किया गया, तो जवाब न मिल सका। 2014 में मोदी की सफलता में अपनी भूमिका के बारे में पूछे जाने पर रामदेव ने बताया कि यह अच्छा नहीं कि आप अपनी तारीफ करें। मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा, लेकिन जो बड़े राजनीतिक बदलाव हुए हैं, उनकी पृष्ठभूमि मैंने तैयार की थी।
भाजपा शासित राज्यों में जमीन से जुड़े सरकारी दस्तावेज और अधिकारियों से इंटरव्यू के अनुसार, नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद से पंतजलि ने फैक्ट्रियां, शोध सुविधाओं और जड़ी-बूटी की सप्लाई चेन लगाने के लिए करीब 2000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया। जबकि कांग्रेस के शासन में कंपनी ने अपनी काफी जमीन बेची थी। चार अधिग्रहण के मामलों में से दो में 100 एकड़ से अधिक अधिग्रहण किया गया था (भाजपा शासित राज्यों में)। भाजपा शासित राज्यों में पतंजलि को जमीन खरीदने में तकरीबन 77 फीसदी का फायदा मिला। कंपनी ने तब नई फैक्ट्रियां स्थापित करने और नई नौकरियों का सृजन करने का वादा किया था।
नागपुर में बीते साल सितंबर में पतंजलि फूड प्रोसेसिंग प्लांट की आधारशिला रखे जाने के दौरान परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी मौजूद थे। कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग में पंतजलि के एमडी आचार्य बालकृष्ण मंत्री से कहते नजर आए कि उन्हें फैक्ट्री के लिए एक सड़क की मांग उठाई थी। जवाब में गडकरी ने उसे नेशनल हाईवे बनाने का फैसला कर दिया था। पतंजलि ने 234 एकड़ जमीन के लिए 59 करोड़ रुपए चुकाए थे। यह जमीन राज्य के स्पेशल इकनॉमिक जोन से सटी थी, जिसकी बाजार में कीमत 260 करोड़ रुपए से अधिक थी। जमीन सस्ते में पतंजलि को इसलिए दी गई, क्योंकि वह विकसित नहीं थी। वहां तक पहुंचने के लिए सड़क भी नहीं थी।
सबसे बड़ा ट्रांजैक्शन 2014 में अक्टूबर और दिसंबर में असम के पूर्वी हिस्से में हुआ था। इसमें 1200 एकड़ जमीन ट्रांसफर की गई थी। दस्तावेज बताते हैं कि यह जमीन पतंजलि योगपीठ को गाय का संरक्षण करने की शर्त पर मुफ्त में दे दी गई थी।
एक अन्य क्षेत्र में रायटर की इन्वेस्टिगेशन में पाया गया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवी संघ उस अभियान में जुटा था, जो बीज बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी मोनास्टो को. के खिलाफ ऐसी भारतीय कंपनियों और उसके सहयोगियों को खड़ा करने में जुटा हुआ था। सत्ता में आने के आधे साल बाद ही मोदी सरकार ने अपने मंत्रालय के तहत पारंपरिक भारतीय औषधि का विभाग बनाया, जो योग और आयुर्वेदिक उत्पादों के इस्तेमाल पर जोर देने लगा। यही कारण है कि पतंजलि आज मार्केट लीडर बना बैठा है। मंत्रायल इस समय पंतजलि के कई उत्पादों को नियंत्रित करता है।
पीएम मोदी अगर स्टेशन पर चाय बेचने वाले के बेटे हैं, तो रामदेव भी किसान के बेटे हैं। साठ के दशक में उनका जन्म हरियाणा में हुआ था। 1995 में बालकृष्ण के साथ मिलकर उन्होंने अपने उद्योग और आयुर्वेदिक दवाएं बनाने की शुरुआत की थी। तब उनके पास 3500 रुपए थे। काम जमाने के लिए दोनों ने किसी से 10000 हजार रुपए उधार लिए थे।
रामदेव 2011 में भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों में शामिल होते-होते राजनीति में आए। 2013 में उन्होंने मोदी को देश का नेतृत्वकर्ता बताया। यहीं से उन्होंने मोदी का समर्थन करना शुरू कर दिया था।
पतंजलि के अंतर्गत सोशल रेवोल्यूशन मीडिया एंड रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कम्यूनिकेशन फर्म भी दो डायरेक्टर्स ने मिलकर खोली थी। फर्म के सीईओ शांतनू गुप्ता के मुताबिक, भाजपा के आईटी डिविजन से ट्विटर और बाकी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स पर मैसेज कॉर्डिनेट के लिए तब हफ्ते में बैठकें हुआ करती थीं।
रामदेव के संगठन के तमाम सदस्यों ने वॉलंटियर्स द्वारा मोदी के लिए वोट जुटाने की बात मानी है। हरिद्वार में इस साल मई में पतंजलि के रिसर्च इंस्टीट्यूट के उद्घाटन के मौके पर पीएम मोदी रामदेव की तरफ सम्मानजनक अंदाज में ताली बजाते हुए देखे गए थे। रामदेव ने भी सिर झुका कर उनका अभिवादन किया।
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