अभिजीत बनर्जी का पीयूष गोयल को जवाब, भारत में ग़रीबों की मुश्किलें बढ़ रही हैं

 20 Oct 2019 ( न्यूज़ ब्यूरो )
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अभिजीत बनर्जी, एस्टर डुफ़लो और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर माइकल क्रेमर को 2019 का अर्थशास्त्र के लिए प्रतिष्ठित नोबेल सम्मान मिला तो भारतीय मीडिया में ये ख़बर प्रमुखता से चली।

अभिजीत बनर्जी का जन्म भारत में हुआ था और मास्टर तक यहीं पढ़े-लिखे भी। बनर्जी के जेएनयू में पढ़े होने की भी ख़ूब चर्चा हुई। ऐसा इसलिए भी क्योंकि बीजेपी के कई नेताओं के निशाने पर जेएनयू रही है।

अभिजीत बनर्जी मोदी सरकार के नोटबंदी के फ़ैसले को आलोचक रहे हैं और 2019 के आम चुनाव में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र तैयार करने में मदद की थी।

कांग्रेस के घोषणापत्र में न्याय स्कीम अभिजीत बनर्जी का ही आइडिया था। न्याय स्कीम के तहत कांग्रेस पार्टी ने 2019 के आम चुनाव में वादा किया था कि वो सरकार बनाती है तो देश के बीस फ़ीसदी सबसे ग़रीब परिवारों को हर साल उनके खाते में 72 हज़ार रुपए ट्रांसफर करेगी।  हालांकि चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से हार गई।

अभिजीत बनर्जी के नोबेल मिलने पर भारत सरकार की बहुत ठंडी प्रतिक्रिया रही। हालांकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर एक औपचारिक बधाई दी। लेकिन भारत सरकार के रेल और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की अभिजीत बनर्जी पर टिप्पणी सबसे ज़्यादा चर्चा में रही।

पीयूष गोयल ने शुक्रवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा था, ''अभिजीत बनर्जी ने नोबेल सम्मान जीता है इसके लिए हम उन्हें बधाई देते हैं। लेकिन आप सभी जानते हैं कि वो पूरी तरह से वाममंथी विचारधारा के साथ हैं।  उन्होंने कांग्रेस को न्याय योजना बनाने में मदद की थी लेकिन भारत की जनता ने पूरी तरह से नकार दिया।''

पीयूष गोयल की इस टिप्पणी पर अभिजीत बनर्जी ने प्रतिक्रिया दी है।  अभिजीत अपनी नई किताब 'गुड इकोनॉमिक्स फोर हार्ड टाइम्स: बेटर एंसर टू आवर बिगेस्ट प्रॉब्मलम्स' को लॉन्च करने दिल्ली आए हुए हैं।

दिल्ली में उनसे पीयूष गोयल की टिप्पणी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने एनडीटीवी से कहा, ''मुझे लगता है कि इस तरह की टिप्पणी से कोई मदद नहीं मिलेगी। मुझे अपने काम के लिए नोबेल मिला है और उन्हें मेरे काम पर सवाल खड़ा करने से कुछ भी हासिल नहीं होगा। अगर बीजेपी भी कांग्रेस पार्टी की तरह अर्थशास्त्र को लेकर सवाल पूछेगी तो क्या मैं सच नहीं बताऊंगा? मैं बिल्कुल सच बताऊंगा। मैं एक प्रोफ़ेशनल हूं तो सभी के लिए हूं। किसी ख़ास पार्टी के लिए नहीं हूं। अर्थव्यवस्था को लेकर जो मेरी समझ है वो पार्टी के हिसाब से नहीं बदलेगी। अगर कोई मुझसे सवाल पूछेगा तो मैं उसके सवाल पूछने के मक़सद पर सवाल नहीं खड़ा करूंगा। मैं उन सवालों का जवाब दूंगा।''

अभिजीत ने कहा, ''मैंने भारत में कई राज्य सरकारों के साथ काम किया है। इसमें बीजेपी की भी सरकारें हैं। मैंने गुजरात में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ मिलकर काम किया है। तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ही थे और मेरा तब का अनुभव बहुत बढ़िया रहा था। मुझे उस वक़्त किसी राजनीतिक व्यक्ति के तौर पर नहीं देखा गया था बल्कि एक विशेषज्ञ के तौर पर लिया गया और उन्होंने उन नीतियों को लागू भी किया था। मैं एक प्रोफ़ेशनल हूं तो वही हूं और ऐसा सबके लिए हूं। मैंने हरियाणा में खट्टर के साथ भी काम किया है।''

अभिजीत बनर्जी पर वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की टिप्पणी को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट कर मोदी सरकार को निशाने पर लिया है।  राहुल ने ट्वीट कर कहा, ''प्रिय अभिजीत बनर्जी, नफरत ने इन हठियों को अंधा बना दिया है। इन्हें इस बात का कोई इल्म नहीं है कि एक प्रोफ़ेशनल क्या होता है। आप दशकों तक कोशिश करते रह जाएंगे लेकिन ये नहीं समझेंगे। इतना तय है कि लाखों भारतीयों को आपके काम पर गर्व है।  

नोबेल मिलने के बाद एमआईटी में पत्रकारों से बातचीत में अभिजीत बनर्जी ने कहा था कि राजकोषीय घाटा और मुद्रा स्फीति के संतुलन के लक्ष्य से चिपके रहने से भारतीय अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती नहीं जाएगी। आख़िर इसका मतलब क्या है?

इस सवाल के जवाब में अभिजीत ने हिन्दुस्तान टाइम्स से कहा, ''मुझे नहीं लगता है कि यह कोई रॉकेट साइंस है। भारतीय अर्थव्यवस्था में जो कुछ हो रहा है उसके मूल्यांकन के आधार पर ही ऐसा कह रहा हूं। भारत की अर्थव्यवस्था में सुस्ती मांगों में कमी के कारण है। अगर हमारे पास पैसा नहीं है तो बिस्किट नहीं ख़रीदेंगे और बिस्किट कंपनी बंद हो जाएगी। मुझे लगता है कि मांग को बढ़ाना चाहिए। मतलब लोगों के पास पैसे हों ताकि खर्च कर सकें। ओबामा सरकार ने अमरीका में यही किया था। इसका विचारधारा से कोई मतलब नहीं है। भारत की अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती मांगों में कमी के कारण है।''  

अभिजीत बनर्जी की किताब में कहा गया है कि भारत तेज़ गति से वृद्धि दर हासिल करने के लिए ऐसी नीतियों पर चल रहा है जिनसे ग़रीबों की मुश्किलें बढ़ रही हैं। इसका मतलब क्या है?

इसके जवाब में अभिजीत बनर्जी ने कहा, ''ऐसा कई देशों में हुआ है।  अमरीका और ब्रिटेन में क्या हुआ? 1970 के दशक में इन देशों की वृद्धि दर में गिरावट आई तो वो कभी संभल नहीं पाई। उन्हें कोई आडिया नहीं था कि ये गिरावट क्यों है? तब इसके लिए कहा गया कि ज़्यादा टैक्स और ज़्यादा पुनर्वितरण इसके लिए ज़िम्मेदार है। बाद में इनमें कटौती की गई।  यह रीगन और थैचर शैली की अर्थव्यवस्था थी।''

क्या भारत की अर्थव्यवस्था इसी ओर बढ़ रही है?

इसके जवाब में अभिजीत ने कहा, ''नहीं, मैं ये कह रहा हूं कि इस तरह की गिरावट में सरकारों की ये स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है। हमलोग ये कह रहे हैं कि हमें इस बात को लेकर आगाह होना चाहिए कि ऐसी नीतियों से अमरीका और ब्रिटेन को कोई मदद नहीं मिली थी। बल्कि इन नीतियों से विषमता बढ़ी है। इन नीतियों से वैसी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है जो ट्रंप कर रहे हैं और जिससे ब्रेग्ज़िट को हवा मिली।''

तो भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए क्या करना होगा?

इसके जवाब में अभिजीत बनर्जी ने हिन्दुस्तान टाइम्स से कहा, ''मैं कोई मैक्रो इकनॉमिस्ट नहीं हूं। लेकिन अगर मैं नीति निर्माता होता तो पहले व्यापक रूप से डेटा जुटाता। इसके बाद अगर मैं इस निर्णय पर पहुंचता कि यह मांग आधारित समस्या है तो मैं ग़रीबों के हाथों में पर्याप्त पैसे देता।  ये ऐसी बात है जिसमें मैं पूरी तरह से भरोसा करता हूं। ओबामा प्रशासन ने भी यही काम किया था। यह कोई नई बात नहीं है।''

 

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